World Braille Day 2025: खुद की आंखों में छाया है अंधेरा, लेकिन ज्ञान की रोशनी से संवार रहे दृष्टिहीन बच्चों का भविष्य…
Success Story: कहते हैं भगवान ने आंखों को रोशनी न दी तो क्या, ज्ञान का प्रकाश ही काफी है, जीवन में उजाले के लिए। कुछ इसी तरह दृष्टिहीन होने के बावजूद बच्चों के बीच शिक्षा का दीप जला कर समाज के लिए एक मिसाल पेश कर रहे हैं प्रधानपाठक जसवंत कुमार आदिले व सहायक शिक्षक कमलेश साहू।
World Braille Day 2025: जांजगीर-चांपा @ आनंद नामदेव। ब्रेल लिपि के आविष्कारक लुई ब्रेल के जन्मदिन पर हर साल 4 जनवरी को विश्व ब्रेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस मौके पर ऐसे शख्सों की कहानी बता रहे हैं, जिन्होंने अपनी दिव्यांगता को मात देकर जीवन में कामयाबी भी हासिल की है और न केवल अपने जैसे ही दृष्टिहीन बच्चों के जीवन में शिक्षा का उजियारा भी फैला रहे हैं बल्कि उन्हें समाज में आत्मनिर्भर बनाने का काम भी कर रहे हैं।
ऐसे ही एक शख्स है कि जसवंत कुमार आदिले। जसवंत कुमार जन्म से ही देख नहीं सकते थे, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने ब्रेल लिपि के जरिए अपनी पढ़ाई पूरी की बल्कि शास्त्रीय संगीत और हिंदी साहित्य में एमए की डिग्री हासिल की। आज वे शासकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय महामाया पामगढ़ में प्रधानपाठक हैं। जहां ब्रेल लिपि के जरिए स्कूल के बच्चों को पढ़ाते हैं।
55 दृष्टिहीन बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा
जसवंत कुमार आदिले सक्ती में छग सर्व दिव्यांग कल्याण संघ की मदद से 2017 से दृष्टिबाधित विशेष विद्यालय का संचालन भी कर रहे हैं। यहां करीब 55 दृष्टिहीन बच्चों को पढ़ाई-लिखाई नि:शुल्क हो रही है। यह संस्था पूरी तरह से जनसहयोग से संचालित हो रही है। इसमें जसवंत कुमार आदिले की धर्मपत्नी विंध्येश्वरी, संरक्षक जसवीर सिंह चावला, सदस्य नरेन्द्र पांडेय सब मिल जुलकर सहयोग से चला रहे हैं। विशेष बच्चों की मदद करने के पीछे जसवंत सिंह बताते हैं, शुरूआत में वे भी कई ऐसे संस्थानों में पढ़े हैं जो जनसहयोग से चलते होंगे। जिन्हें मैं तो नहीं जानता, लेकिन उन्हीं के सहयोग से ही आज उन्हें दो रोटी नसीब हो रही है।
ब्रेल लिपि से सामान्य बच्चों को पढ़ाते हैं शिक्षक कमलेश
जिले में ऐसे ही एक और शिक्षक है कमलेश साहू जो भी ब्लाइंड है, जो स्कूली बच्चों के जीवन में शिक्षा का उजियारा फैला रहे हैं। कमलेश साहू पामगढ़ के भिलौनी गांव के रहने वाले हैं जो वर्तमान में शासकीय प्राथमिक शाला मौहारपारा ससहा में एचएम के रूप में पदस्थ हैं।
आंखें नहीं, दृष्टिहीन…
जो स्वयं ब्रेल लिपि में मुद्रित पाठ्यपुस्तकों के माध्यम से सामान्य बच्चों को पढ़ा लेते हैं। इतना ही नहीं म्यूजिक में भी दक्ष हैं तो कम्प्यूटर के की-बोर्ड में उनकी उंगलियां इतनी रफ्तार से दौड़ती है कि सामने वालों को यकीन नहीं होता वे देख नहीं सकते। की-बोर्ड वाइस कमांड रहता है। इससे कौन सा बटन प्रेस हो रहा है वे आवाज से सुनकर समझ लेते हैं।
संघर्ष से पहुंचे हैं इस मुकाम तक
शिक्षक कमलेश साहू ने अंग्रेजी साहित्य में एमए किया है। वे बच्चों को भी अंग्रेजी पढ़ाते हैं। बिलासपुर के शासकीय दृष्टिबाधित विद्यालय में प्रारंभिक पढ़ाई पूरी करने के बाद कॉलेज की पढ़ाई जबलपुर विवि से पूरी की। इस दौरान तीन सालों तक कम्प्यूटर भी सीखा। फिर 2005 में सहायक शिक्षक बने। इसी तरह राजेन्द्र बेहरा में राजनीति में एमए हैं। प्रारंभिक शिक्षा उनकी भी बिलासपुर में हुई है और आगे की पढ़ाई जबलपुर में। 1998 में सहायक शिक्षक के रूप में बरपाली में पोस्टिंग हुई। वर्तमान में छह सालों से परसदाखुर्द में व्याख्याता के रूप में पदस्थ हैं।
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