Women’s Life Expectancy : भारत का एक मात्र राज्य जहां महिलाएं जीती हैं कम, चौंकाने वाला खुलासा
Jharkhand Women Life Expectancy : UNFPA की इंडिया एजिंग रिपोर्ट 2023 के मुताबिक, ज़्यादातर राज्यों में महिलाएं पुरुषों से ज़्यादा जीती हैं, लेकिन एक राज्य ऐसा है जहां महिलाओं की औसत उम्र पुरुषों से कम है।
Jharkhand Women’s Life Expectancy : संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की ‘इंडिया एजिंग रिपोर्ट 2023’ एक रिपोर्ट आई है जिसमें बताया गया है कि भारत के कई राज्यों में औरतें, मर्दों के मुकाबले ज्यादा लंबा जीवन जीती हैं। इस रिपोर्ट में खासकर बुज़ुर्गों, यानी बूढ़ी आबादी की मौजूदा स्थिति, उनकी संख्या और उनके रहन-सहन के बारे में बताया गया है।
रिपोर्ट के आंकड़ों के हिसाब से, राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, उत्तराखंड, केरल, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों और जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश में, 60 साल की उम्र के बाद औरतों की जीवन प्रत्याशा (यानी जीने की औसत उम्र) 20 साल से ज्यादा है। लेकिन भारत में एक राज्य ऐसा भी है जहां महिलाओं की औसत उम्र पुरषों के मुकाबले कम है।
Jharkhand Women’s Life Expectancy : भारत का इकलौता राज्य जहां महिलाएं पुरुषों से कम जीती हैं
दुनिया में आम चलन: महिलाएं पुरुषों से अधिक जीती हैं
विश्व स्तर पर यह देखा गया है कि महिलाओं की औसत आयु पुरुषों से अधिक होती है। भारत में भी यही प्रवृत्ति है लेकिन यह स्थिति हमेशा से नहीं थी। 1981 से पहले भारत में पुरुषों की जीवन प्रत्याशा महिलाओं से अधिक थी। समय के साथ यह बदला और अब देशभर में महिलाएं पुरुषों से अधिक जीती हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy)
भारत में वर्ष 1950 में पुरुषों की औसत उम्र 41.9 वर्ष थी जबकि महिलाओं की 40.4 वर्ष। समय के साथ दोनों में सुधार हुआ, और 2023 तक यह आंकड़ा पुरुषों के लिए 70.5 वर्ष और महिलाओं के लिए 73.6 वर्ष हो गया।
झारखंड में उलटी स्थिति: महिलाओं की उम्र कम हालांकि पूरे देश में महिलाएं अधिक जी रही हैं, झारखंड एकमात्र ऐसा राज्य है जहां यह प्रवृत्ति उलट गई है। 2010-14: पुरुषों की औसत उम्र 66.2 वर्ष, महिलाओं की 66.9 वर्ष थी।
2016-20: पुरुषों की उम्र बढ़कर 70.5 वर्ष हो गई, जबकि महिलाओं की केवल 68.9 वर्ष रही। 2017-21: पुरुषों की जीवन प्रत्याशा 69.5 वर्ष रही, जबकि महिलाओं की 69.3 वर्ष — यानि पुरुष थोड़े अधिक जीते।
Life Expectancy : क्या हैं इसके कारण?
विशेषज्ञों के अनुसार संभावित कारण हो सकते हैं: स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच: ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में महिलाओं को समय पर चिकित्सा नहीं मिल पाती।
पोषण की कमी: महिलाओं में कुपोषण की दर अधिक पाई गई है। प्रसव संबंधी जटिलताएं: मातृ मृत्यु दर झारखंड में अभी भी चिंता का विषय है। सामाजिक असमानताएं: महिलाओं को प्राथमिकता न देना, कम उम्र में विवाह, और घरेलू हिंसा जैसे कारक भी भूमिका निभा सकते हैं।
4 पोषक आहार जिनकी हर महिला को है जरूरत
झारखंड की महिलाओं की लाइफ स्टाइल (Lifestyle of women of Jharkhand
1. पारंपरिक जीवनशैली का प्रभाव
झारखंड की बड़ी आबादी ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में रहती है। यहां की महिलाएँ आज भी पारंपरिक जीवनशैली अपनाए हुए हैं:
घरेलू कामकाज में व्यस्तता: महिलाएं सुबह से ही खेतों, जंगलों, जल संग्रह, और पशुपालन में लग जाती हैं।
2. स्वास्थ्य और पोषण की चुनौतियां
कुपोषण और एनीमिया: कई महिलाएँ पर्याप्त पोषण नहीं ले पातीं, जिससे उनमें एनीमिया और कमजोरी आम है।
प्रसवकालीन स्वास्थ्य जोखिम: समय पर मेडिकल सुविधाएं न मिलने से गर्भावस्था और प्रसव के दौरान कई जटिलताएं होती हैं। शारीरिक श्रम: जीवनशैली में अत्यधिक मेहनत शामिल है, लेकिन उचित आराम या पोषण नहीं मिलता।
3. शिक्षा और जागरूकता की स्थिति
कम साक्षरता दर: ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में महिलाओं की साक्षरता दर अपेक्षाकृत कम है। स्कूल छोड़ने की प्रवृत्ति: किशोरावस्था में लड़कियां शिक्षा छोड़कर घरेलू जिम्मेदारियाँ निभाने लगती हैं।
4. सामाजिक चुनौतियां
बाल विवाह अब भी कई क्षेत्रों में मौजूद है। घरेलू हिंसा और भेदभाव: कई महिलाएं मानसिक और शारीरिक हिंसा का सामना करती हैं। स्वतंत्रता की कमी: निर्णय लेने में उनकी भूमिका सीमित रहती है।
5. धीरे-धीरे हो रहे बदलाव
हाल के वर्षों में कुछ बदलाव देखने को मिले हैं: स्वास्थ्य सेवाओं और पोषण योजनाओं (जैसे आंगनबाड़ी, जननी योजना) के माध्यम से सुधार के प्रयास। शहरी क्षेत्रों में पढ़ी-लिखी महिलाएं नौकरी, उद्यमिता, और राजनीति में आगे बढ़ रही हैं।
NGOs और सरकारी योजनाओं से महिलाओं को कौशल प्रशिक्षण और आर्थिक सशक्तिकरण में मदद मिल रही है।
महिलाओं में कुपोषण (Malnutrition in women)
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने 2015-16 में एक सर्वे करवाया था, जिसका नाम ‘नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे – 4 (NFHS-4)’ था। इस सर्वे की रिपोर्ट के हिसाब से, भारत में 15 से 49 साल की उम्र की लगभग 22.9% महिलाएं कम वजन वाली (यानी पोषण की कमी वाली) थीं। कम वजन का पता लगाने के लिए एक पैमाना होता है जिसे BMI कहते हैं, और इसमें उनका BMI 18.5 kg/m2 से कम था।
रिपोर्ट में बताया गया है कि जिन पांच राज्यों में ऐसी महिलाओं की संख्या सबसे ज्यादा थी, वे हैं: झारखंड (31.5%) बिहार (30.4%) दादरा और नगर हवेली (28.7%) मध्य प्रदेश (28.4%) गुजरात (27.2%) और राजस्थान (27%)
एक राज्य, एक सवाल
झारखंड की यह अनोखी स्थिति हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि विकास के आंकड़ों के पीछे छिपी सच्चाई क्या है? अगर पूरे भारत में महिलाएं अधिक जी रही हैं, तो झारखंड में यह उलटा क्यों हो रहा है? यह सामाजिक नीति निर्माताओं के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है महिलाओं की ज़िंदगी को बेहतर बनाना अब केवल विकल्प नहीं, ज़रूरत है।
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