डॉ. निर्मल ने कहा कि यह कृत्य दलित और पिछड़े वर्ग के महापुरुषों का अपमान है। उन्होंने आरोप लगाया कि अखिलेश यादव ने अपने शासनकाल में भी डॉ. अंबेडकर और अन्य पिछड़े वर्ग के नेताओं के नाम से जुड़े संस्थानों के नाम बदलने का प्रयास किया था। उदाहरणस्वरूप, अमरोहा जिले से ज्योतिबा फुले का नाम हटाया गया था, जो पिछड़े वर्ग के प्रमुख समाज सुधारक थे।
इसके अलावा, डॉ. निर्मल ने यह भी आरोप लगाया कि अखिलेश यादव की सरकार ने दलित कर्मचारियों के प्रमोशन में आरक्षण पर रोक लगाई थी, जिससे हजारों अधिकारी प्रभावित हुए। उन्होंने कहा कि यह सब दर्शाता है कि समाजवादी पार्टी की नीतियां दलित विरोधी रही हैं। डॉ. निर्मल ने मांग की कि अखिलेश यादव को दलित समाज से सार्वजनिक तौर पर माफी मांगनी चाहिए और भविष्य में ऐसे कृत्यों से बचना चाहिए जो समाज के वंचित वर्गों की भावनाओं को आहत करें।
भाजपा के वरिष्ठ नेता और उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने इसे सपा की “भ्रष्ट मानसिकता” का प्रतिबिंब बताया और कहा कि यह बाबा साहेब का जानबूझकर किया गया अपमान है, जिसे जनता कभी स्वीकार नहीं करेगी।
बसपा प्रमुख मायावती ने भी इस मुद्दे पर सपा की आलोचना की और कहा कि डॉ. अंबेडकर का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने सपा और कांग्रेस को चेतावनी दी कि अगर ऐसे कृत्य जारी रहे तो बसपा सड़कों पर उतरकर विरोध करेगी। सपा ने इस पोस्टर से खुद को अलग करते हुए कहा कि यह पार्टी का आधिकारिक पोस्टर नहीं है और कार्यकर्ताओं की व्यक्तिगत पहल है। अखिलेश यादव ने भी कार्यकर्ताओं से आग्रह किया कि वे पार्टी नेताओं की तुलना राष्ट्रीय महापुरुषों से न करें।