उसका आधा शरीर खिड़की से बाहर हवा में था जबकि सिर ग्रिल में अटकी थी। इस दौरान नीचे खड़े लोगों ने जब यह दृश्य देखा, तो चारों तरफ हड़कंप मच गया। सोसायटी के लोग जोर-जोर से चिल्लाने लगे और तुरंत मदद की गुहार लगाने लगे। सौभाग्य से उसी इमारत में रहने वाले कोथरूड फायर स्टेशन में कार्यरत योगेश चव्हाण छुट्टी थे। जैसे ही उन्हें बच्ची के खिड़की से बाहर होने के बारे में पता चला तो वह बिना समय गंवाए तीसरी मंजिल पर दौड़ पड़े। हालांकि, फ्लैट बाहर से बंद था और दरवाजे पर ताला लगा हुआ था।
चव्हाण तुरंत इमारत के नीचे गए और बच्ची की मां से चाबी लेकर दोबारा ऊपर आये। फ्लैट का दरवाजा खोलकर वे तेजी से अंदर गए और बच्ची को खिड़की के रास्ते अंदर खींच लिया। उनकी तत्परता से भाविका की जान बच गई और एक बड़ी अनहोनी टल गई।
घटना के बाद कुछ देर के लिए परिसर में अफरातफरी का माहौल रहा, लेकिन बच्ची के सुरक्षित बचने के बाद सभी ने राहत की सांस ली। स्थानीय लोगों ने फायर ब्रिगेड कर्मी योगेश चव्हाण के त्वरित और साहसी कदम की सराहना करते हुए उन्हें हीरो बताया है।
इस घटना में फायर ब्रिगेड जवान योगेश चव्हाण ने जिस बहादुरी और सूझबूझ का परिचय दिया, उसकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है। उनकी तत्परता ने एक मासूम की जान बचा ली। हालांकि इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि छोटे बच्चों को अकेले छोड़ना कितना खतरनाक हो सकता है।