देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ लेने के बाद जब जस्टिस भूषण गवई पहली बार महाराष्ट्र दौरे पर पहुंचे, तब उनके स्वागत में प्रोटोकॉल का पालन न होने पर विवाद खड़ा हो गया। स्वागत के लिए राज्य सरकार का कोई वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित न होने पर सीजेआई ने बार एसोसिएशन के एक कार्यक्रम में नाराज़गी भी जताई। उन्होंने राज्य के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और मुंबई पुलिस आयुक्त के गैरहाजिर रहने पर अप्रसन्नता व्यक्त की। हालांकि, इसके कुछ ही समय बाद ये तीनों अधिकारी मुंबई के दादर स्थित चैत्यभूमि में सीजेआई गवई के स्वागत के लिए पहुंच गए थे। बावजूद इसके, विपक्षी दलों ने इसे मुख्य न्यायाधीश का अपमान बताते हुए सरकार की आलोचना की और संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की।
सीजेआई बीआर गवई ने कहा था कि वह इस तरह की छोटी-मोटी चीजों में नहीं पड़ना चाहते, लेकिन इसका जिक्र करना जरूरी है, जिससे लोगों को इसके बारे में पता चले। उन्होंने सार्वजनिक रूप से नाराजगी जाहिर की थी। उन्होंने संबंधित अधिकारियों से यह सवाल भी किया था कि क्या उनका यह व्यवहार उचित है।
इस पूरे घटनाक्रम पर जनहित याचिका भी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को सस्ती लोकप्रियता के लिए दायर बताते हुए खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता पर 7000 रुपये का जुर्माना लगाया।
शीर्ष कोर्ट ने टिप्पणी की, यह जनहित याचिका नहीं, बल्कि चीप पब्लिसिटी के उद्देश्य से दाखिल की गई याचिका है। याचिकाकर्ता ने याचिका में कहा था कि 18 मई 2025 को भारत के मुख्य न्यायाधीश बनने के बाद जस्टिस बीआर गवई पहली बार महाराष्ट्र आए। मुंबई में बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र और गोवा ने उनके सम्मान में एक समारोह आयोजित किया, लेकिन इस दौरान राज्य की मुख्य सचिव सुजाता सौनिक, पुलिस महानिदेशक रश्मि शुक्ला और मुंबई पुलिस आयुक्त देवेन भारती न तो सीजेआई के स्वागत के लिए एयरपोर्ट पर मौजूद थे और न ही समारोह में आए। यह प्रोटोकॉल का स्पष्ट उल्लंघन है।