गौरतलब है वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, राजस्थान का लिंगानुपात प्रति 1,000 पुरुषों पर 928 महिलाएं था। यह राष्ट्रीय औसत 943 से कम था। इसमें भी राजस्थान के शहरी क्षेत्रों में लिंगानुपात 914 था, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 933 था, यानी शहरों में स्थिति ज्यादा खराब है। चिंता का विषय यह भी है कि राजस्थान के शहरी क्षेत्रों में 0-6 साल के बच्चों का लिंगानुपात 1,000 लडक़ों पर 874 लड़कियां था, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 1,000 लडक़ों पर 892 लड़कियां था। दोनों आंकड़ों पर नजर डालें तो यह साफ नजर आ रहा है कि आगामी दिनों में यह और ज्यादा बिगड़ेगा। इसके बावजूद प्रदेश में जिला स्तर पर ‘बेटी बचाओ, बेटी पढाओ’योजनान्तर्गत आयोजित होने वाली गतिविधियों में कलक्टर की अध्यक्षता में होने वाली जिला टास्क फोर्स कमेटी के अलावा कोई काम नहीं हो रहा है। सूत्रों का कहना है कि कई जगह तो केवल कागजी कार्रवाई करके जो बजट खर्च हो रहा है, उसकी खानापूर्ति की जाती है। यही वजह है स्वीकृत बजट का 40 प्रतिशत भाग खर्च ही नहीं हो रहा है।
चार सालों में प्राप्त बजट व व्यय वित्तीय वर्ष – प्राप्त राशि – व्यय राशि 2019-20 – 8.86 करोड़ – 4.36 करोड़ 2020-21 – 8.45 करोड़ – 5.25 करोड़ 2021-22 – 8.75 करोड़ – 5.76 करोड़
2022-23 – 7.03 करोड़ – 4.81 करोड़ विधायकों ने मांगी जानकारी, आंकड़े नहीं बता पाए जिले प्रदेश को बेटी बचाओ, बेटी पढाओयोजनान्तर्गतकेन्द्र से मिली राशि को लेकर विधायक चन्द्रभान सिंह चौहान, समरजीत सिंह एवं कालूराम ने प्रश्न लगातार अलग-अलग जानकारी मांगी, जिसमें सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग ने केन्द्र से मिली राशि की जानकारी तो दे दी, लेकिन जिलों को आवंटित बजट को किस मद में कितना खर्च किया, इसकी जानकारी नागौर, चूरू, डूंगरपुर, जैसलमेर, जालोर, राजसमंद सीकर सहित कई जिले नहीं दे पाए।
केवल बैठकों तक सीमित पत्रिका पड़ताल में सामने आया कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना में जिला स्तर के अधिकारी केवल बैठकों में चर्चा करने व निर्देश देने तक सीमित रहते हैं। कुछ मद तो ऐसे हैं, जिनमें एक रुपया भी खर्च नहीं किया जाता। इसकी जानकारी सरकार ने विधानसभा में दी है। इनमें निगरानी, मूल्यांकन एवं दस्तावेजीकरण तथा क्षेत्रीय गतिविधियां आयोजन में कई जिलों का बजट खर्च शून्य है।
नहीं पूरे अधिकारी इस योजना की क्रियान्विति की जिम्मेदारी महिला अधिकारिता विभाग पर है, लेकिन कई जिले ऐसे हैं, जहां अधिकारियों के पद लम्बे समय से रिक्त चल रहे हैं। कई जगह दूसरे विभागों के अधिकारियों को अतिरिक्त चार्ज दिया हुआ है, जो इतना ध्यान नहीं दे पाते हैं।
मार्च तक खर्च कर देंगे मेरे पास करीब आठ महीने से उप निदेशक का अतिरिक्त चार्ज है। इस दौरान दो बार चुनावी आचार संहिता लग गई। फिर हमने करीब चार लाख का बजट खर्च कर दिया और शेष मार्च तक कर देंगे।
– राकेश सिरोही, कार्यवाहक उप निदेशक, महिला अधिकारिता, नागौर