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नागौर

नागौर की लोक संस्कृति में जीवंत होती त्यौहारों की परम्परा

नागौर. नागौर की लोक संस्कृति मार्च-अप्रेल में पूरी तरह से जीवंत हो उठती है। होली के साथ ही नगरवासियों में परंपरागत उत्सवों को मनाने का उत्साह जाग उठता है। यह सिलसिला रामनवमी और हनुमान जयंती तक चलता है। नागौर की संस्कृति में सामूहिकता का विशेष महत्व है।

नागौरMar 19, 2025 / 02:18 pm

Ravindra Mishra

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नागौर. गेर करते युवा

सांस्कृतिक पर्व : गेर नृत्य के साथ मेलों के खास आयोजन

परम्परागत डांडिया और गणगौर पर्व का उत्साह और उल्लास

रविन्द्र मिश्रा

नागौर. नागौर की लोक संस्कृति मार्च-अप्रेल में पूरी तरह से जीवंत हो उठती है। होली के साथ ही नगरवासियों में परंपरागत उत्सवों को मनाने का उत्साह जाग उठता है। यह सिलसिला रामनवमी और हनुमान जयंती तक चलता है। नागौर की संस्कृति में सामूहिकता का विशेष महत्व है। और यहां उत्सव पूरे शहर में धूमधाम से मनाए जाते हैं। संस्कृति एकता और सामूहिकता का आदर्श प्रस्तुत करती है। यहां के लोग मिलजुलकर त्यौहारों को मनाते हैं, और यही सांस्कृतिक सौहार्द शहर की पहचान है।
त्यौहारों में समाज के सभी वर्गों का योगदान होता है। खास बात यह है कि यहां परम्पराओं का पालन करते हुए विभिन्न धर्मों के लोग एक दूसरे को त्यौहारों की शुभकामनाएं देते हैं। नागौर की यह सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल है। यहां की मिठाइयों का स्वाद देशभर में प्रसिद्ध है। वहीं त्यौहारों के समय गेर नृत्य का आयोजन भी लोक संस्कृति का अहम हिस्सा है। होली से लेकर गणगौर तक यह नृत्य हर जगह आयोजित किया जाता है। गेर नृत्य में ढोल-नगाड़े की थाप और गीतों पर नृत्य करते हैं। यह नृत्य सांस्कृतिक धरोहर के रूप में युवा पीढ़ी द्वारा भी आगे बढ़ाया जा रहा है।
गेर नृत्य में समुदाय की सहभागिता

शहर के विभिन्न स्थानों बंशीवाला मंदिर, नया दरवाजा, माली समाज भवन, मानासर, ताऊसर आदि इलाकों में डांडिया गेर का आयोजन होता है। आयोजनों में प्रवासी भी शामिल होने के लिए उत्सुक रहते हैं। गेर नृत्य में नर्तक अपने हाथों में लकड़ी की छड़ी रखते हैं और पारंपरिक वेशभूषा पहनकर नृत्य करते हैं। गेर नृत्य में रचनात्मकता को बढ़ाने के लिए अलग-अलग स्वांग भी धारण करते हैं। गेर नृत्य में बांसुरी, ढोलक, नगाड़ा और ढोल जैसे वाद्ययंत्रों का उपयोग होता है। वाद्ययंत्रों की थाप पर नृत्य उत्सव की रंगत को और भी बढ़ा देता है।
अपने में खास है नागौर की परम्पराएं

त्यौहारों का सामूहिक उत्सव: नागौर में हर त्यौहार सामूहिक रूप से मनाना एक परंपरा

होली से गणगौर तक गेर नृत्य का आयोजन: गेर नृत्य का आयोजन पूरे शहर में
गेर नृत्य की परंपरा: ढोल-नगाड़े की थाप और गीतों पर करते हैं नृत्य

प्रवासी भी होते हैं शामिल: नागौर के त्यौहारों में प्रवासी भी उत्साह से लेते हैं भाग

गेर में विविध स्वांग: लोग विभिन्न स्वांग धारण कर करते हैं नृत्य
वाद्ययंत्रों का समावेश: बांसुरी, ढोलक, नगाड़ा, ढोल आदि वाद्ययंत्रों का उपयोग

सांस्कृतिक विविधता का मेल: विभिन्न धर्मों के लोग एक साथ मनाते हैं त्यौहार

यहां की संस्कृति की विशिष्ट पहचान

-नागौर की लोक संस्कृति की अलग ही पहचान है। यहां बारह महीने के सभी त्याहौर परम्परागत रूप से मनाए जाते हैं। मंदिर में गाये जाने वाले भजन भी तीज- त्यौहार दिन व मौसम आधारित होते हैं। इससे भजनों का महत्व काफी बढ़ जाता है। होली पर किए जाने वाले डांडिया गेर की विशेष पहचान है। इस परम्परागत लोक नृत्य में शामिल होने के लिए प्रवासी भी इंतजार करते हैं। कई समाजों की गेर प्रसिद्ध है। गेर में 36 मीटर का बाघा पहनते है। बाठडिया का चौक, लोढों का चौक व बंशीवाला मंदिर में गेर का विशेष आयोजन होते है।
गोपाल अटल, भजन गायक नागौर।

– नागौर में होली की गेर की परम्परा आज भी कायम है। प्राचीन समय से शहर में पुष्करणा समाज के लोग परंपरानुसार रीति रिवाज से होली मनाते हैं। पुष्करणा समाज की धूड गेर, झगड़ा गेर व डांडिया गेर प्रसिद्ध है। समाज के लोग होली से गणगौर तक आयोजनों में उत्साह से शामिल होते हैं।
शंकरलाल छंगाणी, शहरवासी।

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