क्या है पूरा मामला
बता दें कि पूरा मामला मथुरापुर के एक सरकारी अस्पताल से जुड़ा हुआ है। इस अस्पताल में 1976 में 10 बेड थे। इसके बाद आज तक एक भी बेड की संख्या नहीं बढ़ी है। इस मामले की सुनवाई कलकत्ता हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस टी.एस. शिवगणनम और न्यायमूर्ति चैताली चटर्जी की बेंच ने की।
बेंच ने क्या कहा?
सुनवाई करते हुए बेंच ने कहा कि स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव ने 1976 से 10 बिस्तरों वाले अस्पताल की क्षमता में वृद्धि न किए जाने को उचित ठहराया है। यह स्वीकर करने योग्य नहीं है। जब तक आपको घसीटा नहीं जाएगा, आप कुछ नहीं करेंगे। आपको नागरिकों की चिंता नहीं है। उन्हें मरने दो, उन्हें मरने दो। 1976 में 10 बिस्तरों वाला अस्पताल था, 2025 में प्रधान सचिव कह रहे हैं कि वही 10 बिस्तरों वाला अस्पताल पर्याप्त है, कोई मूर्ख भी विश्वास नहीं करेगा। ‘आपको वोटों की चिंता है, लोगों की नहीं’
मुख्य न्यायाधीश ने आगे कहा कि आप 48 घंटों में शहर का कायापलट सकते हैं। आप क्रिसमस और नए साल पर पार्क स्ट्रीट पर रोशनी देखकर बहुत गर्व महसूस करते हैं। लोग पीड़ित हैं और यहां एक स्टैंड है कि 1976 का 10 बिस्तरों वाला अस्पताल पर्याप्त है। उन्हें विवेक के साथ काम करना चाहिए। केवल वोटों की चिंता हैं, लोगों की नहीं।
‘लोगों को अच्छी स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए’
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि प्रदेश के दूरदराज क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को भी अच्छी स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध होनी चाहिए। बेंच ने राजनीतिक समर्थन के बिना नौकरशाहों के सामने आने वाली दिक्कतों पर भी टिप्पणी की। बेंच ने कहा नौकरशाह राजनीतिक इच्छाशक्ति के बिना काम नहीं कर सकते। बिना समर्पण के रथ खींचना बहुत मुश्किल है। आपको अपनी भर्ती नीति बदलने की जरूरत है। लोगों ने आपको सत्ता में बिठाया है, कुछ वापस देना आपकी जिम्मेदारी है।