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CAG Report: ढाई गुना कमीशन से लेेकर लाइसेंस देने में अनियमितता तक, 15 प्वाइंट में जानिए कहां-कहां फंस रही AAP

CAG Report: दिल्ली में शराब नीति बदलने से दिल्ली सरकार को 2000 करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ है। कैग रिपोर्ट में खुलासे के बाद अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया की मुश्किले बढने वाली है।

भारतFeb 26, 2025 / 08:38 am

Shaitan Prajapat

CAG रिपोर्ट विधानसभा में पेश, 2 हजार करोड़ के नुकसान का दावा

CAG Repor: दिल्ली विधानसभा के विशेष सत्र के दूसरे दिन मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने शराब नीति से जुड़ी कैग की रिपोर्ट प्रस्तुत की। विधानसभा के पटल पर रखी गई इस कैग रिपोर्ट के मुताबिक, आम आदमी पार्टी (आप) की तत्त्कालीन सरकार ने नई शराब नीति में कई तरह की गड़बड़ियां की, जिसके चलते दिल्ली सरकार को करीब 2,002.68 करोड़ रुपये का घाटा हुआ।

केजरीवाल-सिसोदिया सहित कई नेताओं की बढ़ सकती हैं मुश्किलें

कैग रिपोर्ट के सामने आने के बाद दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया समेत आम आदमी पार्टी (आप) के कई नेताओं की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। दिल्ली के शराब घोटाले के मामले में अरविंद केजरीवाल, सिसोदिया समेत कई नेता आरोपी बनाए गए हैं। दोनों नेता कई महीनों तक दिल्ली की तिहाड़ जेल में रह चुके हैं। फिलहाल इस मामले की जांच सीबीआइ और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) कर रही है।

21 आप विधायक तीन दिन के लिए निलंबित

इस बीच, में कैग रिपोर्ट रखे जाने पर हंगामा कर रहे 21 आप विधायकों को स्पीकर विजेंद्र गुप्ता ने तीन दिन के लिए निलंबित कर दिया। इसी के साथ दिल्ली विधानसभा का यह विशेष सत्र तीन दिन के लिए बढ़ा भी दिया गया है। यानी विपक्षी विधायक अब सोमवार तक सदन की कार्यवाही में सम्मिलित नहीं हो पाएंगे। वैसे मंगलवार को आम आदमी पार्टी के एक विधायक अमानतुल्लाह खान विधानसभा में उपस्थित नहीं थे, इसलिए उन्हें निलंबित नहीं किया गया।

कैग रिपोर्ट की खास बातें

1 राजस्व हानि 2,002.68 करोड़ रुपएः

-गैर-अनुपालन क्षेत्रों में शराब की दुकानें न खोलने से 941.53 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।
-त्यागे गए लाइसेंसों की दोबारा नीलामी न करने से 890 करोड़ रुपए की हानि हुई।
-विभाग के विरोध के बावजूद, जोनल लाइसेंसधारियों की फीस में 144 करोड़ रुपए की छूट दी गई।
-सुरक्षा जमा सही से न लेने के कारण 27 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।

2 लाइसेंसिंग नियमों का उल्लंघनः

-दिल्ली आबकारी नियम, 2010 के नियम 35 को लागू नहीं किया गया।
-निर्माण व खुदरा व्यापार में हिस्सेदार थोक विक्रेता को लाइसेंस दिए गए, जिससे हितों का टकराव हुआ।
-पूरी शराब आपूर्ति श्रृंखला का नियंत्रण कुछ गिने-चुने कारोबारियों के हाथ में था।

3 थोक विक्रेताओं के मुनाफे में भारी बढ़ोतरीः

-थोक विक्रेताओं का कमीशन 5% से बढ़ाकर 12% कर दिया गया, यह कहकर कि गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशालाएं (क्वालिटी कंट्रोल लैब) बनाई जाएंगी। लेकिन कोई सरकारी स्वीकृत प्रयोगशाला (लैब) स्थापित नहीं की गई। इस कदम से केवल थोक विक्रेताओं को फायदा हुआ और सरकार का राजस्व घट गया।

4 लाइसेंसधारियों की कमजोर जांचः

-खुदरा लाइसेंस देने से पहले उनकी संपत्ति, वित्तीय स्थिति या आपराधिक रेकॉर्ड की जांच नहीं की गई।
-एक जोन संचालित करने के लिए 100 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश आवश्यक था, लेकिन वित्तीय पात्रता की कोई शर्त नहीं रखी गई।
-कई लाइसेंसधारियों की पिछले तीन वर्षों में आय शून्य या बहुत कम थी, जिससे राजनीतिक संरक्षण और प्रॉक्सी ओनरशिप की आशंका बढ़ी।
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5 विशेषज्ञों की सिफारिशों की अनदेखीः

-आप सरकार ने 2021-22 की नई आबकारी नीति बनाते समय अपनी ही विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों को नजरअंदाज कर दिया और इसका कोई उचित कारण नहीं बताया गया।

6 शराब कार्टेल का निर्माणः

-पहले एक व्यक्ति को केवल दो दुकानें संचालित करने की अनुमति थी, लेकिन नई नीति में 54 स्टोर तक चलाने की अनुमति दी गई।
-इससे शराब व्यापार कुछ बड़े कारोबारियों के हाथों में चला गया। 849 शराब दुकानों के लिए सिर्फ 22 निजी संस्थाओं को लाइसेंस दिए गए, जिससे बाजार में मोनोपॉली (एकाधिकार) बन गई।

7 मोनोपॉली व ब्रांड प्रमोशन को बढ़ावाः

-नई नीति के तहत निर्माताओं को केवल एक ही थोक विक्रेता से जुड़ने के लिए मजबूर किया गया, जिससे प्रतिस्पर्धा कम हो गई।
-सिर्फ तीन थोक विक्रेता (इंडोस्प्रीट, महादेव लिकर और ब्रिंडको) 71% शराब आपूर्ति को नियंत्रित कर रहे थे। ये तीनों थोक विक्रेता 192 ब्रांड्स की एक्सक्लूसिव सप्लाई के अधिकार रखते थे। इससे कीमतें बढ़ीं।

8 कैबिनेट प्रक्रिया का उल्लंघनः

-मुख्य छूट और रियायतें बिना कैबिनेट की मंजूरी के दी गईं। उपराज्यपाल (एलजी) से कोई परामर्श नहीं लिया गया, जिससे कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन हुआ।

9 अवैध रूप शराब दुकानें खोलनाः

-रिहायशी और मिश्रित उपयोग वाले क्षेत्रों में एमसीडी और डीडीए की मंजूरी के बिना शराब की दुकानें खोल दी गईं।
-जोन-23 में 4 शराब की दुकानें गलत तरीके से व्यावसायिक क्षेत्र घोषित की गईं, जिससे 2022 में एमसीडी ने इन्हें सील कर दिया।

10 शराब की कीमतों में हेरफेरः

-आबकारी विभाग ने एल 1 लाइसेंसधारियों को एक्स-डिस्टलरी प्राइस (ईडीपी) निर्धारित करने की अनुमति दी, जिससे शराब की कीमतें कृत्रिम रूप से बढ़ गईं।

11 क्वालिटी जांच में गड़बड़ीः

-गुणवत्ता परीक्षण रिपोर्ट के बिना ही शराब बेचने की अनुमति दी गई। कुछ परीक्षण रिपोर्टें गैर-एनएबीएल प्रमाणित प्रयोगशालाओं से ली गईं, जिससे एफएसएसएआई मानकों का उल्लंघन हुआ।
-51% विदेशी शराब मामलों में रिपोर्ट या तो पुरानी थी, गायब थी, या उस पर कोई तारीख ही नहीं थी।
भारी धातुओं और मिथाइल अल्कोहल जैसी हानिकारक चीजों की उचित जांच नहीं हुई, जिससे स्वास्थ्य खतरा बढ़ा।

12 तस्करी पर लचर कार्रवाईः

-आबकारी खुफिया ब्यूरो (ईआईबी) ने शराब तस्करी रोकने के लिए कोई सक्रिय कदम नहीं उठाए।
-जब्त शराब का 65 प्रतिशत देसी शराब थी, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
-एफआइआर में कुछ इलाकों में बार-बार तस्करी के मामले सामने आए, लेकिन सरकार ने इस पर कोई सख्त कदम नहीं उठाया।

13 खराब डेटा प्रबंधन से अवैध व्यापारः

-आबकारी विभाग के पास असंगठित रेकॉर्ड थे, जिससे राजस्व नुकसान और तस्करी के पैटर्न को ट्रैक करना असंभव था।
-ब्रांड विकल्पों की कमी और शराब की बोतल के आकार की पाबंदियों के कारण अवैध शराब व्यापार बढ़ गया।

14 नीति तोड़ने पर कोई कार्रवाई नहींः

-‘आप’ सरकार ने आबकारी कानूनों का उल्लंघन करने वाले लाइसेंसधारियों पर कोई दंड नहीं लगाया।
-शो-कॉज़ नोटिस खराब तरीके से तैयार किए गए, जिससे प्रवर्तन कमजोर हो गया।
-आबकारी छापेमारी मनमाने ढंग से की गई, जिससे कार्यान्वयन प्रभावी नहीं रहा।

15 सुरक्षा लेबल परियोजना विफलः

-शराब की सत्यता सुनिश्चित करने और छेड़छाड़ रोकने के लिए प्रस्तावित ‘एक्साइज एडेसिव लेवल’ परियोजना लागू नहीं हुई।
-आधुनिक डेटा एनालिटिक्स और एआई का उपयोग करने के बजाय, आबकारी विभाग ने पुरानी ट्रैकिंग विधियों पर निर्भर किया।

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