सुनी कश्मीरियों की आवाज
सीमा पर सीजफायर हो गया। तोपों और गोलियों की आवाजें अब नहीं आ रही है लेकिन डल झील में तैरते शिकारे, गुलमर्ग की बर्फीली वादियां, पहलगाम की हरियाली और श्रीनगर की हलचल खामोश है। पहलगाम में हुए आतंकी हमला ने सिर्फ गोलियों की गूंज नहीं लाया, बल्कि करोड़ों की कश्मीरी टूरिज्म इकोनॉमी को ताश के पत्तों की तरह बिखेर दिया। इस टूरिस्ट सीजन के पीक टाइम में घाटी खामोश है लेकिन इस खामोशी और आतंकवाद के दौर में होने वाली खामोशी में फर्क है। यहां के युवा अब हथियार नहीं, रोजगार चाहते हैं। वे अपने कल को उज्ज्वल देखना चाहते हैं, न कि हाथों में पत्थर और धुएं में गुम जिंदगी को।
दुकानें खुलीं पर चहल-पहल नहीं
कुपवाड़ा में एलओसी के पास केरन सेक्टर के रहने वाले जहूर लोन की लाल चौक पर दुकान है। वे कहते हैं कि पहलगाम हमले से बड़ा नुकसान हुआ है। यह सीजन ऐसे ही चला जाएगा। दिसंबर से हालात बेहतर होने की उम्मीद है। अमरनाथ यात्रा में लोगों के आने की उम्मीद है। सीजफायर के बाद दुकानें खुली हैं लेकिन खरीदारों की चहल-पहल नहीं है।
कश्मीरी अपनी रोजी-रोटी पर लात नहीं मारेगा
श्रीनगर के मोहम्मद तनवीर कहते हैं कि हादसे से पहले बहुत काम था। लेकिन अब बिल्कुल काम सूना पड़ गया। कश्मीरी कभी अपनी रोजी-रोटी पर लात नहीं मारेगा। अगर हमारी इंवॉल्वमेंट होती तो हम शिकायत नहीं करते हैं। हमने इस हमले के विरोध में दो दिन बाजार बंद कर दिया था।
कश्मीरी काम मांग मांगता है
रात 12 बजे के कुछ कश्मीरी युवा लाल चौक पर बैठे थे। इम्तियाज और असफाक से बात हुई तो बोले…बेरोजगारी ही आतंकवाद और पत्थर उठाने के लिए मजबूर करती है। आमदनी होती है तो लोग भटके हुए रास्ते पर नहीं चलते। कश्मीरी काम मांगता है? लोगों के पास इनकम का सोर्स होगा तो देश विरोधी कामों में लगाने की चाल सफल नहीं होगी। पुराने रास्ते पर लौटने का डर
उरी सेक्टर के लालपुल के रहने वाले मोहम्मद खालिद कहते हैं कि हजारों लोग नशा और पत्थरबाजी छोड़कर काम करने लगे थे। उनकी जिंदगी पटरी पर आ गई थी। अब काम बंद हो जाएगा तो हालात फिर बिगड़ेंगे। सरकार को इस मुद्दे के बारे में सोचना चाहिए। बेरोजगारी, गरीबी और हालात इन्हें इतना मजबूर ना करें कि वह जिस इतिहास को छोड़कर आए हैं फिर उसी रास्ते पर चलने के लिए मजबूर हो जाएं।
कश्मीर विकास की गाड़ी पर सवार
डल झील में द मुगल शेरातन हाउसबोट के संचालक जावेद बारामुला जिले के रहने वाले हैं। वे कहते हैं कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद का कश्मीर अलग है। पत्थरबाजी और धरना इतिहास बन चुका है। लोगों को रोजगार और शांति से जीवन जीने की एक नई दिशा दिखाई देती है। कश्मीर विकास की गाड़ी पर सवार है।