क्या है मामला?
मामले में शिकायतकर्ता आदिवासी बोवी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और वह भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के सतत प्रौद्योगिकी केंद्र में संकाय सदस्य थे। शिकायतकर्ता का आरोप है कि 2014 में उन्हें एक हनी ट्रैप मामले में झूठा फंसाया गया और बाद में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। इसके अलावा, उन्होंने यह भी दावा किया कि उनके साथ जातिवादी दुर्व्यवहार और धमकियां दी गईं। शिकायतकर्ता के आरोप के अनुसार, यह जातिवाद आधारित अत्याचार और धमकियां उनके साथ लंबे समय तक की गईं, जिससे उनकी मानसिक स्थिति पर गहरा असर पड़ा। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, इस मामले में गोविंदन रंगराजन, श्रीधर वारियर, संध्या विश्वेश्वरैह, हरि केवीएस, दासप्पा, बलराम पी, हेमलता म्हिशी, चट्टोपाध्याय के, प्रदीप डी सावकर और मनोहरन जैसे अन्य नाम भी शामिल हैं, जो आरोपी बनाए गए हैं।
निर्दोष व्यक्ति को झूठे आरोपों से बचाना सरकार की जिम्मेदारी
इस मामले पर इंफोसिस के पूर्व सीएफओ मोहनदास पई ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए कहा, “यह बहुत गलत है। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि गवर्निंग बोर्ड में शामिल निर्दोष लोगों पर इस तरह के गलत आरोप न लगाए जाएं। सभी के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए।” मोहनदास पई ने आरोपों को नकारते हुए, इसे न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल उठाने वाला बताया है और कहा कि किसी भी निर्दोष व्यक्ति को झूठे आरोपों से बचाना सरकार की जिम्मेदारी है।