मिशन की सफलता के बाद बुधवार को संवाददाताओं से बात करते हुए इसरो के नव नियुक्त अध्यक्ष वी. नारायणन ने कहा कि इसरो ने अब तक प्रक्षेपणयानों की छह पीढियां विकसित की। इसमें से पहली पीढ़ी का प्रक्षेपणयान सतीश धवन के नेतृत्व में विकसित किया गया जिसके परियोजना निदेशक पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम थे। तब से लेकर अब तक 46 वर्षों में 100 मिशन लाॅन्च हुए और इसरो ने 548 उपग्रहों को कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया। इनमें से 433 विदेशी उपग्रह भी शामिल हैं। इसरो ने अभी तक 120 टन पे-लोड अंतरिक्ष में पहुंचाया है जिनमें से 23 टन विदेशी पे-लोड है। कई महत्वपूर्ण मिशन लांच हुए जिनमें तीन चंद्रयान मिशन, मंगल और सूर्य मिशन आदि शामिल हैं।
नासा-इसरो के संयुक्त मिशन पर फोकस
नारायणन ने कहा कि जीएसएलवी एफ-16 से अब नासा-इसरो के संयुक्त सिंथेटिक अपर्चर राडार उपग्रह (निसार) का प्रक्षेपण होगा। अगले कुछ ही महीनों में यह मिशन लाॅन्च किए जाने की उम्मीद है। इस उपग्रह में दो राडार हैं। एक एल बैंड राडार जिसे इसरो ने विकसित किया है और दूसरा एस बैंड राडार जिसे नासा की जेट प्रोपल्शन प्रयोगशाला ने विकसित किया है।
लाॅन्च पैड का निर्माण 2 साल में
नाविक श्रृंखला के उपग्रहों पर इसरो अध्यक्ष ने कहा कि अभी चार उपग्रह ऑपरेशनल हैं जबकि पांचवां आज लाॅन्च किया गया है। इस श्रृंखला के लिए तीन और उपग्रहों की मंजूरी मिल गई है। अगले पांच से छह महीने में एक और उपग्रह लाॅन्च किया जाएगा।
तिरुमला मंदिर पहुंचे इसरो प्रमुख
ऐतिहासिक सौंवे प्रक्षेपण से एक दिन पहले इसरो प्रमुख नारायणन वैज्ञानिकों की एक टीम के साथ तिरुमला में भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन करने पहुंचे। उन्होंने भगवान के चरणों में रॉकेट का एक मॉडल रखा और मिशन की सफलता के लिए विशेष प्रार्थना की। उन्होंने इसरो के आगामी मिशनों की सफलता के लिए भी प्रार्थना की। उन्होंने बताया इसरो में तीसरे लॉन्च पैड के लिए 400 करोड़ रुपये आवंटित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार जताया और कहा कि अंतरिक्ष में भारी रॉकेटों का प्रक्षेपण संभव हो सकेगा।
ऐसे किया गया डिजाइन
यूआर सैटेलाइट सेंटर की तरफ से डिजाइन और विकसित एनवीएस-2 उपग्रह का वजन लगभग 2,250 किलोग्राम है। इसमें अपने पूर्ववर्ती एनवीएस-01 की तरह सी-बैंड में रेंजिंग पेलोड के अलावा एल-1, एल-5 और एस बैंड में नेविगेशन पेलोड है। इसके जरिये जमीनी, हवाई और समुद्री नेविगेशन को और सटीक बनाने मदद मिलेगी। वहीं, कृषि संबंधी डाटा जुटाना, बेड़े का प्रबंधन करना और मोबाइल फोनों में लोकेशन आधारित सेवाओं का इस्तेमाल करना भी और आसान होगा। इसरो के मुताबिक, यह सैटेलाइट उपग्रहों के लिए कक्षा निर्धारण, इंटरनेट-ऑफ-थिंग्स (आईओटी) आधारित एप और आपातकालीन सेवाओं के लिहाज से भी बेहद अहम है।