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Muharram 2025: भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में कब है मुहर्रम, जानें छुट्टी की तारीखें और इतिहास

Muharram 2025: मोहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है, जिसमें इमाम हुसैन की शहादत और करबला की लड़ाई की याद ताजा की जाती है।

भारतJul 05, 2025 / 03:15 pm

M I Zahir

Muharram 2025 moon may be sighted on 26 june

Muharram 2025 moon may be sighted on 26 june(फोटो सोर्स: पत्रिका/ सोशल मीडिया)

\Muharram 2025: भारत में मुहर्रम 2025 (Muharram 2025) का प्रमुख दिन यानी यौम-ए-आशूरा इस बार रविवार, 6 जुलाई को मनाया जा रहा है। चांद दिखने के आधार पर मुहर्रम का महीना 26 जून से शुरू हो गया था, लेकिन मुख्य दिन (10वां दिन) 6 जुलाई को मनाया जाएगा। पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी चांद दिखने के आधार पर मुहर्रम की शुरुआत 26 जून 2025 को हुई है। वहां भी यौम-ए-आशूरा 6 जुलाई रविवार को मनाया जाएगा। मुहर्रम (Muharram) इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है। यह महीना गंभीरता, शांति और बलिदान का प्रतीक माना जाता है। शिया मुस्लिम समुदाय इस माह को इमाम हुसैन की शहादत की याद में शोक के रूप में मनाता है। वहीं, सुन्नी समुदाय इस दिन रोजा रखता है।
देश / क्षेत्र1 मुहर्रम का महीना शुरू होने की तारीख10 मुहर्रम का खास दिन (आशूरा)
भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, मलेशिया, न्यूज़ीलैंड26–27 जून 20256 जुलाई 2025
अरब (सऊदी, यूएई, कुवैत, कतर, ओमान)25–26 जून 20255 जुलाई 2025
कनाडा, यूरोप (यूके, जर्मनी, फ्रांस, स्वीडन)26 जून 20255 जुलाई 2025
यमन26 जून 202526 जून = सार्वजनिक छुट्टी; आशूरा भी समानान्तर
रान, राक, बहरीनअप्रैल‑अगस्त में शरीयत आधारित; आशूरा सार्वजनिक उत्सवसंकेत: बहरीन में आशूरा पर दो‑दिवसीय नागरिक अवकाश

करबला की लड़ाई और इमाम हुसैन की शहादत

सन 680 ईस्वी में करबला (इराक) की ज़मीन पर एक ऐतिहासिक संघर्ष हुआ, जहां हजरत अली के बेटे इमाम हुसैन ने यज़ीद की तानाशाही के खिलाफ आवाज़ उठाई थी। इस लड़ाई में हुसैन और उनके 72 साथियों की शहादत हुई। यह लड़ाई सत्य, न्याय और धर्म की रक्षा का प्रतीक बन गई।

ताजिये कब से मनाना शुरू हुए, क्या है परंपरा

“ताजिया” से जुड़ी एक प्रमुख परंपरा है, जो विशेष रूप से शिया मुस्लिम समुदाय के बीच देखने को मिलती है, लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप में यह कई सुन्नी समुदायों, यहाँ तक कि गैर-मुस्लिमों द्वारा भी सांस्कृतिक रूप से निभाई जाती है। यह परंपरा मुख्यतः इमाम हुसैन की शहादत और करबला की घटना की स्मृति में होती है।

ताजिया की परंपरा, इतिहास और इसके पीछे का भावार्थ

ताजिया शब्द अरबी के “अज़ा” (عزاء) से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है — शोक या मातम। ताजिया आमतौर पर कागज, बांस, कपड़े, शीशे और रंगीन सजावटी वस्तुओं से बनाई गई एक प्रतीकात्मक मीनार या कर्बला की मज़ार (इमाम हुसैन की कब्र) की प्रतिकृति होती है। यह एक श्रद्धांजलि होती है जो इमाम हुसैन के प्रति सम्मान और शोक व्यक्त करती है। दसवें दिन, यानी यौम-ए-आशूरा को ताजिया जुलूस निकाल कर इसे विशेष स्थानों पर दफनाया या विसर्जित किया जाता है।

ताजिया परंपरा की शुरुआत कब हुई ?

ताजिया का चलन करबला की घटना (680 ई.) के कुछ सदियों बाद शुरू हुआ। इसकी शुरुआत भारत में मुग़ल काल के दौरान मानी जाती है, खासतौर पर तुर्की-ईरानी परंपराओं से प्रभावित शिया समुदायों ने इसकी शुरुआत की। इतिहासकार मानते हैं कि भारत में ताजिया चलन की शुरुआत 14वीं–15वीं शताब्दी में हुई, लेकिन इसे अकबर के समय (16वीं शताब्दी) में लोकप्रियता मिली। मुगल सम्राट अकबर ने इराक के करबला में इमाम हुसैन की असली मज़ार देखने के बाद, उसकी एक कलात्मक प्रतिकृति बनवाई और मोहर्रम में उसे सम्मान के साथ रखा जाने लगा, यहीं से “ताजिया” की परंपरा मजबूत हुई।

ताजिया बनाना और सजाना

लोग घरों, मुहल्लों या इमामबाड़ों में ताजिया बनाते हैं।

इसे खास तरीके से सजाया जाता है: चाँदी, फूल, रंग-बिरंगे कपड़े, चंदन, कागज के शेर, तलवारें आदि के साथ।

मातम और नौहे

ताजिये के साथ लोग जुलूस में शामिल होते हैं और “या हुसैन!” के नारे लगाते हैं।
नौहा (शोक गीत) और मातम (सीना पीटना) किया जाता है।

ताजिया का विसर्जन

दसवें दिन ताजिया को विशेष जुलूस में ले जाकर नदी, तालाब या मिट्टी में दफन किया जाता है, जिसे “ताजिया को सुपुर्द-ए-खाक करना” कहते हैं।

भारत में ताजिया की अनोखी संस्कृति

भारत में कई जगहों पर ताजिया सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और झारखंड में हिंदू समुदाय भी ताजिया बनाने और उठाने में भाग लेते हैं — इसे गंगा-जमुनी तहज़ीब की मिसाल माना जाता है। कई जगहों पर ताजिया की होड़ (प्रतियोगिता) होती है — कि कौन सा ताजिया सबसे ऊँचा या सुंदर है।

मुहर्रम का आध्यात्मिक महत्व

मुहर्रम सिर्फ शोक का महीना नहीं, बल्कि यह आत्मबलिदान, सिद्धांतों के लिए संघर्ष, और आध्यात्मिक निष्ठा की प्रेरणा भी देता है।

शिया मुसलमान इस दौरान जलूस निकालते हैं, मातम करते हैं और दुआओं के जरिए इमाम हुसैन को याद करते हैं।
सुन्नी मुसलमान विशेष रूप से 9 और 10 मोहर्रम को रोजा रखते हैं, जिसे हज़रत मूसा के फिरऔन से बचाव की याद में मनाया जाता है।

करबला का संदेश आज भी प्रासंगिक

करबला की घटना आज भी दुनिया को यह सिखाती है कि सत्य और न्याय के लिए लड़ना जरूरी है, भले ही इसके लिए जीवन का बलिदान देना पड़े। इमाम हुसैन का जीवन त्याग, सहनशीलता और साहस की मिसाल बन गया है।

6 और 7 जुलाई को छुट्टी है या नहीं ?

6 जुलाई 2025 (रविवार) को मुहर्रम/आशूरा है — यह पहले से ही साप्ताहिक अवकाश है।

7 जुलाई 2025 (सोमवार) को भारत सरकार और कई राज्य सरकारों ने सार्वजनिक अवकाश घोषित किया है।
इस दिन स्कूल, कॉलेज, बैंक, सरकारी दफ्तर, और शेयर बाजार (NSE/BSE) बंद रहेंगे। त्योहार से जुड़ी धार्मिक गतिविधियों जैसे ताजिया जुलूस और मजलिस के मद्देनज़र यह छुट्टी दी गई है।

बहुत अकीदत के साथ मनाते हैं मुहर्रम

बहरहाल मुहर्रम एक ऐसा महीना है जो धार्मिक आस्था, ऐतिहासिक बलिदान और सामाजिक संदेशों से भरा हुआ है। भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में यह दिन गहरी अकीदत और आत्मचिंतन के साथ मनाया जाता है। वहीं 6 और 7 जुलाई को छुट्टी की योजना बनाते समय ध्यान रखें कि यह दिन धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

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