वह और उनके पति मुस्लिम नहीं हैं
शरियत के तहत, अगर माता-पिता की संपत्ति का बंटवारा हो जाए तो बेटे को बेटी से दोगुना हिस्सा मिलता है। याचिकाकर्ता ने कहा है कि उसके मामले में यदि उसके बेटे की डाउन सिंड्रोम के कारण मृत्यु हो जाती है, तो उसकी बेटी को संपत्ति का केवल एक तिहाई हिस्सा मिलेगा और शेष एक रिश्तेदार को मिलेगा। सफिया ने अपनी याचिका में कहा है कि वह और उनके पति मुस्लिम नहीं हैं, इसलिए उन्हें भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम में दिशानिर्देशों के अनुसार संपत्ति वितरण की अनुमति दी जानी चाहिए। गौरतलब है कि भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम मुसलमानों पर लागू नहीं होता है। सफिया की याचिका में इसे चुनौती दी गई है।
यह बहुत दिलचस्प मामला है : तुषार मेहता
जब मामला कोर्ट में आया तो सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा,” यह बहुत दिलचस्प मामला है।” ऐसा समझा जा रहा है कि यह मामला धर्म की परवाह किए बिना सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक कानूनों के साथ समान नागरिक संहिता के लिए भाजपा के दबाव की पृष्ठभूमि में सामने आया है। जबकि कुछ समुदायों में आपराधिक कानून आम हैं, विरासत, गोद लेने और उत्तराधिकार को नियंत्रित करने वाले कानून अलग-अलग हैं। समान नागरिक संहिता का विरोध करने वालों का तर्क है कि इस तरह के कदम से धार्मिक स्वतंत्रता पर अंकुश लगेगा और भारत की विविधता को खतरा होगा।