पीठ ने क्या कहा
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि विवाह उस स्थिति में पहुंच गया है, जहां पति-पत्नी सक्रिय रूप से एक-दूसरे पर नजर रख रहे हैं, तो यह अपने आप में टूटे हुए रिश्ते का लक्षण है और उनके बीच विश्वास की कमी को दर्शाता है।
कॉल रिकॉर्ड को माना साक्ष्य
पीठ ने माना कि इस तरह की गुप्त रूप से रिकॉर्ड की गई बातचीत वास्तव में वैवाहिक विवादों में स्वीकार्य साक्ष्य है। इसमें यह भी तर्क दिया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 122 के तहत प्रदत्त वैवाहिक विशेषाधिकार उसी प्रावधान में निहित अपवाद के साथ पढ़ने पर पूर्ण नहीं हो सकता।
निजता का नहीं हुआ उल्लंघन
जस्टिस बीवी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा हमें नहीं लगता कि इस मामले में निजता का कोई उल्लंघन हुआ है। वास्तव में, साक्ष्य अधिनियम की धारा 122 ऐसे किसी अधिकार को मान्यता नहीं देती है। दूसरी ओर यह पति-पत्नी के बीच निजता के अधिकार के लिए एक अपवाद बनाती है और इसलिए इसे क्षैतिज रूप से लागू नहीं किया जा सकता है।
क्या है पूरा मामला
बता दें कि पहली बार यह मामला भटिंडा की एक पारिवारिक अदालत में आया था जो कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत तलाक की कार्यवाही से जुड़ा है। पति ने अपनी पत्नी पर क्रूरता का आरोप लगाया और अपने आरोप को साबित करने के लिए रिकॉर्ड की गई फोन बातचीत का हवाला दिया। पारिवारिक अदालत ने इन रिकॉर्डिंग वाली एक सीडी को सबूत के तौर पर स्वीकार कर लिया। पत्नी ने इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी, यह तर्क देते हुए कि कॉल उसकी सहमति के बिना रिकॉर्ड की गई थीं और उन्हें सबूत के तौर पर स्वीकार करना उसकी निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा।
HC ने पारिवारिक कोर्ट के आदेश को पलटा
हाई कोर्ट ने इस मामले में पत्नी की दलील पर सहमति जताते हुए पारिवारिक न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया। पीठ ने कहा कि कॉल पर दिए गए जवाबों और जिन परिस्थितियों में वे दिए गए, उनका पता नहीं लगाया जा सका। उच्च न्यायालय ने दोहराया कि पति-पत्नी बिना यह सोचे कि अदालत में उनकी बातों की जांच की जा सकती है, खुलकर बात करते हैं। पति ने इस फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी, जिसने अब उसके पक्ष में फैसला सुनाया है।