बबलू वर्तमान में इंदौर में आर्ट एंड क्राफ्ट की पढ़ाई कर रहे हैं उन्होंने इस कलाकृति को बनाने में 7 दिन का समय लिया। कलाकृति को तैयार करने के लिए उन्होंने चावल के दानों को 5 अलग-अलग एक्रेलिक रंगों में रंगा और एक साधारण ड्रॉइंग शीट पर सजाया। इस पूरे काम में उन्होंने रोजाना 4 घंटे की मेहनत की और कुल 500 रुपए का खर्च आया। बबलू के पिता आंध्र प्रदेश में पानी-पूरी का ठेला लगाते हैं। इस उपलब्धि के लिए इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड की ओर से उन्हें सर्टिफिकेट और मेडल से सम्मानित किया है।
बबलू का अगला लक्ष्य नीमच की प्रसिद्ध भादवा माता की कलाकृति बनाकर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराना है। बबलू ने बताया कि चावल से तिरुपति बालाजी बनाने की प्रेरणा उन्हें रील देखने के दौरान प्राप्त हुई एक दिन वह रील देख रहे थे जिसमें एक छोटे बच्चे ने भी सीता राम की पेंटिंग बनाकर अपना नाम कमाया जिसके बाद उन्होंने भी इस उपलब्धि को प्राप्त किया ।