पहले जानिए क्या था मामला?
यह घटना 24 सितंबर 2014 की है। जब आरोपी गिरिराज किशोर भारद्वाज उर्फ श्याम नागा ने अपनी पत्नी कुसुम पर ज्वलनशील पदार्थ डालकर उसे आग लगा दी थी। इस जघन्य अपराध के बाद महिला की मौत हो गई। आरोपी को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 (हत्या) के तहत दोषी ठहराया गया। दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में इस मामले की सुनवाई चल रही थी। इस दौरान अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वीरेन्द्र कुमार खर्टा की अदालत ने 17 मई के आदेश में कहा कि यह मामला “दुर्लभ से दुर्लभतम” (rarest of rare) की श्रेणी में नहीं आता, इसलिए मृत्युदंड नहीं दिया जा सकता। फिर भी यह अपराध इतना घिनौना और गंभीर है कि इसमें आजीवन कारावास की सजा उचित होगी। फैसला सुनाते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वीरेंद्र कुमार खर्टा ने कहा “सजा सुनाते समय न्याय, अपराधी और पीड़ित के अधिकारों के बीच संतुलन बनाना जरूरी है। केवल गरीबी को सहानुभूति का प्रमुख आधार नहीं माना जा सकता।” इस दौरान अभियोजन पक्ष की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक पंकज कुमार रंगा ने अदालत से मांग करते हुए आरोपी के लिए मृत्युदंड की सजा मांगी, क्योंकि यह अपराध अत्यंत नृशंस था। उन्होंने यह भी बताया कि हत्या के बाद परिवार बुरी तरह प्रभावित हुआ। आरोपी के इस कृत्य से एक बेटा पढ़ाई छोड़कर नशे का शिकार हो गया। जबकि दूसरे नाबालिग बेटे को सब्ज़ी बेचने वाले के साथ काम करना पड़ रहा है।
बचाव पक्ष ने सजा में नरमी की लगाई गुहार
इस दौरान बचाव पक्ष के वकील ने कोर्ट में सजा कम करने का निवेदन किया। दोषी के वकील ने कोर्ट को बताया कि यह उसका पहला अपराध है। दोषी गरीब वर्ग से आता है। इसलिए उस पर नरमी बरती जाए और मृत्युदंड न दिया जाए, लेकिन कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया। न्यायाधीश ने कहा,”गरीबी कोई बड़ी नरम करने वाली परिस्थिति नहीं है।” इसके बाद अदालत ने दोषी गिरिराज किशोर भारद्वाज को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई। जज ने कहा “दोषी पहली बार अपराध करने वाला है। दोषी द्वारा किया गया अपराध जघन्य प्रकृति का है। मृतक दोषी की पत्नी थी। मृतक कुसुम और उसके बेटों के परिवार के सदस्यों का सदमा समझा जा सकता है।” अदालत ने इस मामले में मृतका के कानूनी प्रतिनिधियों के लिए पर्याप्त मुआवजा तय करने के लिए मामले को राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (DSLA) के पास भेजा है। अदालत ने कहा कि कुसुम की मौत के बाद उसके परिवार को मानसिक आघात, असुविधा और परेशानी झेलनी पड़ी। मृतक के परिवार के सदस्यों को मुआवजे के बारे में, अदालत ने कहा कि चूंकि कुसुम पहले ही मर चुकी है, इसलिए दोषी सीधे उसके कानूनी उत्तराधिकारियों को मुआवजा नहीं दे सकता है। इसलिए, अदालत ने 17 मई को निर्देश दिया कि दिल्ली पीड़ित मुआवजा योजना, 2018 (भाग- I) के अनुसार, धारा 357 ए सीआरपीसी के तहत मृतक कुसुम के कानूनी उत्तराधिकारियों को मुआवजा दिया जाएगा।