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‘लंबी सजा के बाद बेकसूर साबित लोगों के लिए बने मुआवजा नीति’

सुप्रीम कोर्ट ने उठाया बड़ा सवाल नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक टिप्पणी करते हुए कहा है कि यदि कोई व्यक्ति गलत तरीके से वर्षों जेल में रहा हो और अंततः निर्दोष साबित हो जाए, तो उसे मुआवजा दिया जाना चाहिए। जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने […]

जयपुरJul 17, 2025 / 11:30 pm

Nitin Kumar

Supreme Court (Photo-IANS)

सुप्रीम कोर्ट ने उठाया बड़ा सवाल

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक टिप्पणी करते हुए कहा है कि यदि कोई व्यक्ति गलत तरीके से वर्षों जेल में रहा हो और अंततः निर्दोष साबित हो जाए, तो उसे मुआवजा दिया जाना चाहिए। जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने 15 जुलाई को मौत की सजा पाए एक दोषी को बरी करते हुए यह टिप्पणी की।
कोर्ट ने कहा कि अमरीका जैसे देशों में लंबे समय तक गलत कैद के बाद निर्दोष साबित होने पर मुआवजा देने की स्पष्ट व्यवस्था है, जबकि भारत में इस विषय पर कोई स्पष्ट कानून नहीं है। अदालत ने संसद से अपील की कि इस दिशा में स्पष्ट और प्रभावी कानून बनाया जाए ताकि नागरिकों के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा हो सके।
जस्टिस करोल द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि विदेशी न्यायक्षेत्रों में मुआवजा या तो वैधानिक दावों, या नागरिक अधिकारों के मुकदमों के जरिए दिया जाता है। भारतीय विधि आयोग की 277वीं रिपोर्ट में भी यह मुद्दा उठाया गया था, लेकिन वह ‘दुर्भावनापूर्ण अभियोजन’ तक ही सीमित रहा।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल माफी या रिहाई काफी नहीं, बल्कि वर्षों तक झेले गए कष्ट के लिए मुआवजा मिलना भी न्याय का हिस्सा होना चाहिए।

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