Opinion : चुप्पी तोड़ने से पुख्ता होगी महिलाओं की सुरक्षा
महिलाओं की सुरक्षा का मामला महिला साक्षरता दर से भी जुड़ा है। हालांकि जरूरी नहीं कि केवल शिक्षा से ही कोई महिला शोषण या दहेज उत्पीडऩ के खिलाफ आवाज उठाने लगेगी, लेकिन इससे उसके ऐसा करने की संभावना अवश्य बढ़ जाएगी।
– डॉ. मीरां चड्ढा बोरवांकर, पूर्व पुलिस कमिश्नर, पुणे, मैडम कमिश्नर, ‘इंस्पेक्टर चौगुले’ और ‘लीव्स ऑफ लाइफ’ पुस्तकों की लेखिका भारत, यदि अपनी प्राचीन गौरवशाली स्थिति पर पहुंचना और विकसित देशों की श्रेणी में शामिल होना चाहता है तो उसे अपनी लड़कियों और महिलाओं को सुरक्षित वातावरण प्रदान करने का कार्य निश्चित रूप से करना होगा। इस विषय पर अनगिनत चर्चाएं की जा चुकी हैं, लेकिन धरातल पर ठोस कार्रवाई कम हुई है। परिणामस्वरूप, महिलाओं के विरुद्ध अपराध बढ़ रहे हैं और उनकी सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं उभर रही हैं। महिलाओं के विरुद्ध अपराध के आंकड़ों में वृद्धि का एक कारण यह भी है कि अब महिलाएं ज्यादा तादाद में अपनी शिकायतें दर्ज करा रही हैं और पुलिस भी उनको टाल नहीं रही है। यह कटु सत्य है कि लड़कियों और महिलाओं के खिलाफ अधिकांश अपराध घर की चारदीवारी के भीतर या आस-पड़ोस में ही होते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा दहेज उत्पीड़न ही नहीं, बल्कि परिचितों द्वारा यौन शोषण और छेड़छाड़ के मामले भी चिह्नित किए गए हैं। इन अपराधों को रोकने का सबसे प्रभावी उपाय यह है कि छोटी उम्र से ही लड़कियों को ‘अच्छे और बुरे स्पर्श’ के बारे में बताया जाए। यह कार्य परिवारों और प्राथमिक विद्यालय दोनों कर सकते हैं। एक जागरूक और शिक्षित मां इस दिशा में बेहतर भूमिका निभा सकती है। इस प्रकार, महिलाओं की सुरक्षा का मामला महिला साक्षरता दर से भी जुड़ा है। हालांकि जरूरी नहीं कि केवल शिक्षा से ही कोई महिला शोषण या दहेज उत्पीडऩ के खिलाफ आवाज उठाने लगेगी, लेकिन इससे उसके ऐसा करने की संभावना अवश्य बढ़ जाएगी। इसलिए, लैंगिक सुरक्षा में परिवारों और शैक्षणिक संस्थानों की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। हमारे देश में अक्सर सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा की जिम्मेदारी केवल पुलिस पर डाल दी जाती है, यह उचित नहीं है। ग्राम पंचायतों से लेकर नगर निकायों और कॉरपोरेट तथा सार्वजनिक उपक्रमों तक सभी को इसमें योगदान देना होगा। अच्छी रोशनी वाली सड़कें, पार्क, गलियां, आवासीय सोसायटियों तथा नगरपालिकाओं और पुलिस द्वारा लगाए गए सीसीटीवी कैमरे अपराध की रोकथाम और पहचान में मदद करते हैं। सभी एजेंसियों और स्थानीय समुदायों द्वारा समन्वित प्रयास ही इसका समाधान हैं। नागरिकों की सुरक्षा जरूरत के बारे में नियमित सर्वेक्षण करने से पुलिस को अपराध संभावित क्षेत्रों की निगरानी करने में मदद मिलती है। भारत में अब तक राष्ट्रीय स्तर के किसी सार्वजनिक सुरक्षा सर्वेक्षण में निवेश नहीं किया गया है। परिणामस्वरूप, पुलिस की गश्त नागरिकों की वास्तविक सुरक्षा चिंताओं की बजाय अपनी समझ के आधार पर होती है। इस अंतर को मिटाना आवश्यक है। राजस्थान कैडर के प्रतिभाशाली आइपीएस अधिकारी, जो भारत के पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो के महानिदेशक हैं, ने हाल ही मुझे बताया कि इस तरह का राष्ट्रीय सर्वेक्षण पूरा होने के अंतिम चरण में है। ऐसे सर्वेक्षण स्थानीय स्तर पर भी आवश्यक हैं। बसों, रेलगाडिय़ों और दूसरे परिवहन साधनों में सुरक्षा का नियमित रूप से सर्वेक्षण किया जाना चाहिए और चालकों, परिचालकों आदि को समय-समय पर जागरूक किया जाना चाहिए। महिला सुरक्षा को लेकर बिलबोर्ड और शिकायत निवारण मंचों के संपर्क विवरणों के साथ नियमित सार्वजनिक अभियान चलाए जाने चाहिए। इससे प्रारंभ में महिला अपराधों की शिकायतों में वृद्धि होगी, लेकिन इसका अर्थ यह होगा कि अब महिलाएं चुप्पी साधने के बजाय अपनी आवाज उठाने लगी हैं। उन्हें चुप्पी तोड़ने के लिए प्रोत्साहित करने से अपराधी हतोत्साहित होंगे और सुरक्षित वातावरण का निर्माण होगा। आपातकालीन हेल्पलाइन नंबरों की संख्या भी बढ़ाई जानी चाहिए। संकटकालीन कॉलों की निगरानी और उन पर कार्रवाई से सुरक्षा में सुधार होगा। सभी स्तर की पंचायतों, नगरपालिकाओं और शैक्षणिक संस्थानों को महिलाओं की सुरक्षा के लिए मिलकर काम करने की आवश्यकता है। अपराध स्थल पर उपस्थित लोगों के हस्तक्षेप सहित जागरूकता, संवेदनशीलता और ठोस कार्रवाई तत्काल रूप से आवश्यक है। कार्यस्थलों पर सुरक्षा भी चिंता का विषय है। कार्यालयों, कारखानों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में महिलाओं का यौन शोषण व्यापक है। कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीडऩ (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 की जानकारी को व्यापक स्तर पर प्रसारित करना आवश्यक है। कामकाजी महिलाओं के लिए छात्रावास, अल्पकालिक आवास और सुरक्षित रात्रिकालीन यात्रा की सुविधा से महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी बढ़ेगी। विश्व बैंक के अनुसार, यह भारत की जीडीपी वृद्धि दर 9 प्रतिशत तक पहुंचा जा सकता है, जो 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए आवश्यक है।
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