जवाब— बेहतर कार्य को पहचान मिलना खुशी की बात है। आज दुनियाभर के लोग यह समझने लगे हैं कि हर व्यक्ति में देखभाल करने, कुछ नया रचने और बदलाव लाने की क्षमता होनी चाहिए। लेकिन जब हमने शुरुआत की, तब हमें ‘सोशल एंटरपे्रन्योर’ और ‘चेंजमेकर’ जैसे शब्दों को गढऩा पड़ा। पिछले कुछ वर्षों में ‘चेंजमेकर’ शब्द पूरी दुनिया में आम हो गया है क्योंकि अब इसकी सभी को जरूरत है। चूंकि यह शुरू से ही हमारा उद्देश्य रहा है, यह एक गहरी संतुष्टि देने वाली बात है। अब चुनौती है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि हर व्यक्ति उस अधिकार का अभ्यास कर सके, जिसे हम अंतिम मानव अधिकार मानते हैं यानी ‘देने का अधिकार’। देना अच्छा स्वास्थ्य, सुख और दीर्घायु लाता है, मतलब एक पूर्ण जीवन। लेकिन इस तेजी से बदलती दुनिया में, देने वाला बनने के लिए ‘चेंजमेकर’ बनना आवश्यक है।
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जवाब— सामाजिक परिवर्तन के लिए नवाचार आवश्यक है। अशोका में, किसी भी फेलो के चयन से पहले हम पूछते हैं- ‘नया विचार क्या है?’ अगर विचार में बड़े बदलाव की क्षमता नहीं है, तो हम आगे नहीं बढ़ते। हमारे लगभग 4,000 फेलोज में से 1,400 का ध्यान बच्चों पर केंद्रित है। 89 प्रतिशत फेलो दुनियाभर के एक मिलियन स्कूलों में बच्चों को नेतृत्व देने का काम कर रहे हैं। इससे पढ़ाई के परिणाम सुधरे हैं और अपराध की घटनाएं कम हुई हैं। हमारा असली लक्ष्य यह है कि जब युवा अपनी टीम बना लेते हैं, अपने सपने को साकार कर लेते हैं (जैसे एक वर्चुअल रेडियो स्टेशन या ट्यूटरिंग सेवा) और अपने आस-पास की दुनिया को बदल देते हैं, तो वे जीवन भर के लिए ‘चेंजमेकर’ बन जाते हैं। वे पीएचडी फॉर लाइफ हासिल कर लेते हैं।
बिल ड्रेटन को बचपन से ही भारत आकर्षित करता था। जब वे 18 साल के थे, तब तीन दोस्तों के साथ एक रोड ट्रिप कर भारत आए। यहां ग्रामीण इलाकों में पंचायती राज और इसकी कार्यप्रणाली समझी। उन्होंने वर्ष 1981 में अशोका की स्थापना की। भारत में पहले अशोका फेलो के चयन के बाद, संगठन का विस्तार हुआ। अभी अशोका के 4,000 से अधिक प्रमुख सामाजिक उद्यमी (अशोका फेलो) 90 से अधिक देशों में कार्य कर रहे हैं ताकि ‘एवरीवन ए चेंजमेकर’ वर्ल्ड का निर्माण किया जा सके। स्वास्थ्य, मानवाधिकार और अन्य क्षेत्रों में कार्यरत तीन- चौथाई अशोका फेलो चुने जाने के एक दशक के भीतर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नीति और प्रणाली में परिवर्तन लाते हैं।
उल्लेखनीय है कि बिल ड्रेटन ने हार्वर्ड और स्टैनफोर्ड में पढ़ाया, अमरीका की पर्यावरण संरक्षण एजेंसी में सहायक प्रशासक के रूप में कार्य किया और वाइट हाउस में भी अपनी सेवाएं दीं। उन्होंने मैकिन्से एंड कंपनी में कई परिवर्तनकारी परियोजनाओं का नेतृत्व किया।
जवाब— आज की सबसे बड़ी चुनौती है ‘नई असमानता’। दुनिया के 60 प्रतिशत लोग गिवर यानी चेंजमेकर बनने की क्षमता हासिल कर चुके हैं, लेकिन 40 प्रतिशत लोग इस क्षमता से वंचित हैं और पीछे छूट रहे हैं। पीछे छूटे लोग निराशा में अपने आपको या किसी दूसरे को दोष देने लगते हैं। इसी स्थिति का फायदा उठा रहे हैं दुनियाभर के कट्टर नेता। अगर हम बदलाव नहीं कर पाए, तो लोकतंत्र कमजोर होगा और सोशल एंटरप्रेन्योरशिप को भी नुकसान होगा।
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जवाब— हर क्षेत्र में समस्या को समाधान देने वाले उद्यमियों की जरूरत होती है जो मूलभूत प्रणालियों और ढांचों में बदलाव ला सकें। सोशल एंटरप्रेन्योर सभी के भले के लिए समर्पित होते हैं। वे किसी एक वर्ग या हित के लिए काम नहीं करते। यह एक गहरे नैतिक मूल्य से जुड़ा मसला होता है। सभी के भले के लिए समर्पित होना एक बड़ी प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त भी देता है। इस मूल अंतर के कारण उनकी संगठनात्मक संरचना भी अलग होती है। व्यवसाय बाजार पर कब्जा करना और उसे सुरक्षित रखना चाहता है, जबकि एक सोशल एंटरप्रेन्योर दुनिया को बदलना चाहता है। इसलिए उसकी संरचना होती है- एक एंटरप्रेन्योर, एक छोटा या मध्यम संगठन और एक विशाल आंदोलन। यह आंदोलन स्थानीय चेंजमेकर्स को प्रेरित करता है कि वे उस विचार को अपनाकर अपने क्षेत्र में लागू करें। ये ही लोग फिर दूसरों के लिए रोल मॉडल बनते हैं। यह नेटवर्क सोशल एंटरप्रेन्योर को निरंतर फीडबैक देता है कि क्या काम कर रहा है और क्या नहीं।
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जवाब— सरकारों और कंपनियों, दोनों को लेकर काम करना कठिन होता है। सरकार कर छूट देती है जो एक विकेंद्रित और प्रतिस्पर्धात्मक नागरिक क्षेत्र के लिए लाभकारी है। लेकिन सीधी फंडिंग में टकराव होता है क्योंकि सरकार की कार्यप्रणाली और सोशल एंटरप्रेन्योर्स का दृष्टिकोण बिल्कुल विपरीत होता है। सरकारी एजेंसियों के साथ काम करना जटिल और समय लेने वाला हो सकता है, जबकि सोशल एंटरप्रेन्योर्स जल्दी समाधान चाहते हैं। 1980 के आसपास ही नागरिक क्षेत्र ने सरकारी एकाधिकार से आजादी पाई। यही कारण है कि अशोका कभी सरकारी फंड नहीं लेती। कंपनियां अलग होती हैं। व्यावसायिक एंटरपे्रन्योर के साथ काम करना आसान होता है क्योंकि उनमें वही जोश और समझ होती है।
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जवाब— अगर आपके पास एक बेहतरीन विचार है, तो आप उसे अपनाएं और आगे बढ़ाएं। शुरुआत दोस्तों के सहयोग से होगी। जब आप यह दिखा देंगे कि आपका विचार काम करता है, तो और भी लोग जुड़ेंगे। भारत जैसे देशों में ऐसे कई लोग हैं जो मदद करने को तैयार रहते हैं। ऐसे सैकड़ों अशोका फेलोज हैं जो ठीक यही काम कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, गूंज के संस्थापक अंशु गुप्ता शहरी क्षेत्रों से दिए गए कपड़ों को एक बॉर्टर करेंसी (विनिमय मुद्रा) में बदल देते हैं, जिसका उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों में काम के बदले भुगतान के रूप में किया जाता है। अन्य भारतीय अशोका फेलोज ने पूरे भारत में व्यापक बदलाव किए हैं- जैसे महिलाओं के लिए बैंकिंग की शुरुआत करना, पुलिस भ्रष्टाचार को कम करना, मानव तस्करी का शिकार हुई महिलाओं को फिर से समाज से जोडऩा और उन्हें सशक्त बनाना। साथ ही, युवा जलवायु परिवर्तन और अन्य महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर सक्रिय रूप से कार्य कर रहे हैं। ऐसे हजारों अशोका फेलो पूरी दुनिया में हैं, जो दुनिया को बड़े स्तर पर बदल रहे हैं।
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जवाब— जैसे-जैसे परिवर्तन की गति बढ़ रही है, सोशल एंटरप्रेन्योरशिप मुख्यधारा बनती जा रही है। लोग अपने समुदायों और विश्व स्तर पर समाधान ढूंढने के लिए खुद को सशक्त कर रहे हैं। हम अपने ‘अशोका यंग चेंजमेकर्स’ और ‘यूथ वेंचर’ प्रोग्राम्स के माध्यम से देख रहे हैं कि युवा अब सहानुभूति, टीमवर्क, नई नेतृत्व शैली और चेंजमेकिंग की सोच के साथ बड़े हो रहे हैं। यह नई पीढ़ी दूसरों को सबके भले के लिए प्रेरित करेगी। हालांकि समस्याएं बनी रहेंगी, लेकिन हम ऐसी दुनिया की कल्पना करते हैं, जहां समाधान समस्याओं से तेज दौड़ें और हर कोई समझे कि देना उसका अधिकार है।