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बढ़ते वाहन, घटती रफ्तार: देश में ट्रैफिक की समस्या

देवेन्द्रराज सुथार

जयपुरMar 30, 2025 / 02:12 pm

Neeru Yadav

भारत में बढ़ता ट्रैफिक एक गंभीर समस्या बन चुका है। बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण और अव्यवस्थित यातायात प्रणाली के कारण प्रमुख शहरों में ट्रैफिक जाम आम हो गया है। इससे समय की बर्बादी, आर्थिक नुकसान, पर्यावरण प्रदूषण और स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ रही हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की शहरी जनसंख्या 31.16% थी, जो विश्व बैंक के 2022 के अनुमान के अनुसार शहरी जनसंख्या 2020 तक बढ़कर 35% हो चुकी है। शहरीकरण की यह गति आने वाले वर्षों में और तेज होगी, जिससे महानगरों में वाहनों की संख्या भी बढ़ेगी। दिल्ली में 2023 तक लगभग 1.2-1.3 करोड़ पंजीकृत वाहन थे, जो कई यूरोपीय देशों की कुल वाहन संख्या के बराबर हैं।
ट्रैफिक जाम का एक प्रमुख कारण सार्वजनिक परिवहन की कमजोर स्थिति है। दिल्ली मेट्रो, मुंबई लोकल और कोलकाता मेट्रो जैसे कुछ सफल उदाहरण मौजूद हैं, लेकिन अधिकांश भारतीय शहरों में सार्वजनिक परिवहन सीमित और अव्यवस्थित है। दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन के उपयोग के सम्बंध में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की रिपोर्ट के अनुसार, 2013 से 2018 के बीच दिल्ली में बसों की राइडरशिप में 16.9% की गिरावट दर्ज की गई है। निजी वाहनों पर बढ़ती निर्भरता ट्रैफिक जाम को और गंभीर बना रही है। लंदन और सिंगापुर ने सार्वजनिक परिवहन को इतना प्रभावी बना दिया है कि निजी वाहनों का उपयोग सीमित हो गया है, जबकि भारत में स्थिति उलट है। हालांकि, कंजेशन चार्ज जैसे उपाय भारत में व्यवहारिक रूप से चुनौतीपूर्ण हैं क्योंकि सार्वजनिक परिवहन अभी पर्याप्त नहीं है और डिजिटल टोलिंग सिस्टम पूरी तरह विकसित नहीं हुआ है।
सड़क ढांचे की अपर्याप्तता भी ट्रैफिक समस्या को बढ़ा रही है। भारत का सड़क नेटवर्क विश्व में दूसरा सबसे बड़ा है, जिसकी कुल लंबाई 62,15,797 किलोमीटर से अधिक है, लेकिन इनमें से अधिकांश सड़कें संकरी, जर्जर और अतिक्रमण से प्रभावित हैं। दिल्ली और मुंबई में 30-40% सड़कें अवैध पार्किंग और अनधिकृत निर्माण से बाधित रहती हैं। जापान और दक्षिण कोरिया में सड़क रखरखाव योजनाएं इतनी व्यवस्थित हैं कि ट्रैफिक जाम बहुत कम होता है, जबकि भारत में सड़क परियोजनाओं की धीमी गति के कारण यह समस्या विकराल रूप ले रही है।
भारतीय अर्थव्यवस्था को भी ट्रैफिक जाम के कारण भारी नुकसान उठाना पड़ता है। बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की रिपोर्ट (2018) बताती है कि दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और बेंगलुरु जैसे चार प्रमुख भारतीय शहरों में ट्रैफिक जाम के कारण हर साल लगभग 1.47 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होता है। यह नुकसान ईंधन की बर्बादी, उत्पादकता में कमी और स्वास्थ्य सम्बंधी प्रभावों के कारण होता है। टॉमटॉम ट्रैफिक इंडेक्स के अनुसार, बेंगलुरु के लोग सालाना औसतन 132 घंटे ट्रैफिक जाम में बिता देते हैं, जो उत्पादकता के लिए बड़ा नुकसान है।
पर्यावरण प्रदूषण भी ट्रैफिक जाम की एक गंभीर परिणति है। दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 13 भारत में हैं। ट्रैफिक जाम के कारण वाहनों से निकलने वाले कार्बन उत्सर्जन में भारी वृद्धि होती है, जिससे वायु गुणवत्ता खराब होती है और स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ती हैं। चीन ने इस समस्या से निपटने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों को प्राथमिकता दी है और सार्वजनिक परिवहन को अधिक ऊर्जा-कुशल बनाया है, जबकि भारत में इलेक्ट्रिक वाहन अभी भी बड़े पैमाने पर अपनाए जाने की प्रक्रिया में हैं। भारत में 2023 के अंत तक लगभग 6,586 सार्वजनिक ईवी चार्जिंग स्टेशन उपलब्ध थे, जबकि चीन में यह संख्या 6 मिलियन से अधिक थी। ईवी अपनाने की गति चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर, बैटरी उत्पादन और नीति समर्थन पर निर्भर करती है।
इस समस्या के समाधान के लिए कई प्रभावी रणनीतियां अपनाई जा सकती हैं। सबसे पहले सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को मजबूत करना अनिवार्य है। अधिक शहरों में मेट्रो नेटवर्क, इलेक्ट्रिक बसों और साइकिल ट्रैक को बढ़ावा देना चाहिए। भारत में हाई-ऑक्यूपेंसी व्हीकल लेन का प्रावधान किया जा सकता है, जिससे एक से अधिक यात्रियों वाले वाहनों को प्राथमिकता मिले और कार-पूलिंग को प्रोत्साहन मिले। सड़कों के बुनियादी ढांचे में सुधार भी आवश्यक है। फ्लाईओवर, मल्टी-लेवल पार्किंग और स्मार्ट ट्रैफिक सिग्नल जैसी सुविधाएं विकसित की जानी चाहिए। कृत्रिम बुद्धिमत्ता और बिग डेटा का उपयोग करके ट्रैफिक को प्रभावी रूप से प्रबंधित किया जा सकता है। भारत में अभी तक केवल कुछ ही शहरों (जैसे बेंगलुरु और पुणे) में एआई-आधारित ट्रैफिक मैनेजमेंट लागू हुआ है, जबकि चीन और जापान में यह प्रणाली पहले से ही उन्नत है। इसे देशभर में लागू करने के लिए आवश्यक तकनीकी और प्रशासनिक बदलावों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। हालांकि, इसका चरणबद्ध कार्यान्वयन जरूरी है, पहले टियर-1 शहरों में, फिर टियर-2 और टियर-3 शहरों में विस्तार किया जा सकता है।
कार्य-समय में बदलाव और वर्क-फ्रॉम-होम को बढ़ावा देना भी एक व्यवहारिक समाधान हो सकता है। यदि विभिन्न क्षेत्रों के कार्यालय और स्कूलों का समय अलग-अलग किया जाए, तो ट्रैफिक लोड को विभाजित किया जा सकता है। हालांकि, यह समाधान केवल आईटी और कॉर्पोरेट सेक्टर तक सीमित रहेगा, जबकि फैक्ट्री, सर्विस सेक्टर और खुदरा उद्योग के संदर्भ में भी इस पर चर्चा होनी चाहिए। फ्लेक्सिबल ऑफिस टाइमिंग नीति लागू कर ट्रैफिक पीक टाइम को नियंत्रित किया जा सकता है। इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। पेट्रोल और डीजल वाहनों की तुलना में इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग बढ़ाने के लिए चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना आवश्यक है। भारत में ईवी बैटरी निर्माण, चार्जिंग स्टेशन विस्तार और सरकारी नीतियों के प्रभाव पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
भारत को वैश्विक अनुभवों से भी सीखने की जरूरत है, लेकिन केवल सतही तुलना करने के बजाय व्यवहारिकता पर ध्यान देना आवश्यक है। नीदरलैंड में साइकलिंग को प्राथमिकता देकर ट्रैफिक कम किया गया है, लेकिन भारतीय शहरों में इसे अपनाने की व्यवहारिकता पर विचार करना होगा। जापान में रेलवे और बुलेट ट्रेनों पर अधिक जोर दिया गया है, जिससे सड़क ट्रैफिक में कमी आई है। भारत में भी हाई-स्पीड रेल सिस्टम और सार्वजनिक परिवहन के उन्नयन से ट्रैफिक समस्या का हल संभव हो सकता है। हालांकि, हाई-स्पीड रेल प्रोजेक्ट अभी शुरुआती चरण में है, इसलिए भारत में मेट्रो नेटवर्क विस्तार और इंटरसिटी ट्रेनों की सुधार योजना पर अधिक ध्यान देना चाहिए। यदि सही कदम उठाए जाएं, तो भारत की यातायात व्यवस्था को अधिक कुशल, सुचारु और पर्यावरण-अनुकूल बनाया जा सकता है।

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