भारतीय साहित्य ने लंबे समय से सामूहिक नेतृत्व और नैतिक जिम्मेदारी के विचार पर बल दिया है। उदाहरण के लिए, महाभारत को ही लें। युधिष्ठिर, सबसे बड़े पांडव और सही उत्तराधिकारी होने के बावजूद, कभी केवल अधिकार के बल पर शासन नहीं करते थे। उनका नेतृत्व धर्म (नैतिक कर्तव्य), परामर्श और नैतिक निर्णय लेने में निहित था। इसी तरह समकालीन संगठनों में सफल होने वाले लीडर ईमानदारी और बुद्धिमत्ता से मार्गदर्शन करते हैं, न कि केवल पदीय शक्ति से। सामाजिक आंदोलनों, स्टार्टअप और डिजिटल समुदायों का उदय दर्शाता है कि नेतृत्व अब उपाधियों से बंधा नहीं है। सत्ता का कोई आधिकारिक पद नहीं होने पर भी वैश्विक स्तर पर बदलाव को प्रेरित कर सकते हैं। यह परिवर्तनकारी नेतृत्व ही तो है।
परिवर्तनकारी नेतृत्व की शैली अपनाने वाले लीडर केवल प्रबंधन नहीं करते हैं, वे अपने मिशन और सामूहिक पहचान की भावना उत्पन्न कर अनुयायियों को प्रेरित करते हैं। नेतृत्व का वास्तविक माप दीर्घकालिक प्रभाव है। नेतृत्व अब केवल शीर्ष पर बैठे व्यक्ति के बारे में नहीं है। सफलतम लीडर दूसरों को नेतृत्व करने के लिए प्रेरित करते हैं और उस बदलाव में ही नेतृत्व का भविष्य भी लिखते हैं।