मध्यस्थता एक ऐसी सुव्यवस्थित प्रक्रिया है, जिसमें किसी विवाद में फंसे पक्ष, एक निष्पक्ष व प्रशिक्षित मध्यस्थ की सहायता से आपसी संवाद के माध्यम से किसी सहमति या समाधान तक पहुंचते हैं। यह केवल किसी कानूनी निर्णय की प्रतीक्षा नहीं, बल्कि ‘मैं’ से ‘हम’ तक की गहन यात्रा है—एक ऐसा सफर, जिसमें हर पक्ष की सुनवाई होती है और हर किसी की भागीदारी होती है।
मध्यस्थता का मूल सिद्धांत यह है कि किसी भी विवाद का वास्तविक समाधान एक पक्ष की जीत और दूसरे की हार में नहीं, बल्कि दोनों पक्षों के संतोषजनक समाधान में है। अदालती लड़ाइयों में जहां न्यायालय एक निर्णय थोपता है, वहीं इसके विपरीत मध्यस्थता एक ऐसा खुला वातावरण बनाती है जहां पक्षकार एक-दूसरे से संवाद करके अपनी समस्या का समाधान स्वयं तैयार करते हैं।
इस प्रक्रिया में, जो समाधान निकलता है, उस पर अमल की संभावना भी अधिक होती है और टूटे हुए उन रिश्तों में भी पुनः जुड़ाव की संभावना बनती है जो अन्यथा अपूरणीय रूप से क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। मध्यस्थता की सबसे बड़ी शक्ति यह है कि वह सतही तर्क-वितर्क से परे जाकर पक्षों की गहरी इच्छाओं और जरूरतों तक पहुंचती है। प्रशिक्षित मध्यस्थ की मदद से जब दोनों पक्ष संवाद करते हैं तो अक्सर वे साझा हित उजागर होते हैं, जो प्रारंभ में स्पष्ट नहीं होते।
यह प्रक्रिया विवाद के केवल कानूनी पहलुओं तक सीमित नहीं रहती, बल्कि भावनात्मक और व्यावहारिक आयामों को भी छूती है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें हम ध्यान से सुनते हैं और सहानुभूति के साथ जुड़ते हैं, ताकि एक-दूसरे के नजरिए को साझा किया जा सके और समझा जा सके।
भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटारमणी की परिकल्पना पर आधारित मेडिएशन एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित पहले राष्ट्रीय मध्यस्थता सम्मेलन में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और अन्य वरिष्ठ न्यायाधीशों ने लंबित मामलों के समाधान के लिए मध्यस्थता को उत्साहपूर्वक अपनाने का आग्रह किया। इस वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र को बढ़ावा देने का उनका आधार यह दृष्टिकोण है कि सच्चा न्याय हमेशा अदालत में निश्चित ‘जीत’ या ‘हार’ के बारे में नहीं होता।
इस मौके पर भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी.आर. गवई ने कहा—‘न्यायालय में एक पक्ष सही होता है, दूसरा गलत। इस प्रकार की अदालती कार्यवाही अक्सर सतही और कठोर होती है। मूल कारण अनसुलझा रह जाता है, रिश्ते टूट जाते हैं। अदालतों में एक जीतता है, दूसरा हारता है। लेकिन मध्यस्थता ठीक इसके विपरीत है। गलतफहमियों के कारणों को खोजती है और समाधान की ऐसी समग्र राह दिखाती है जो केवल कानूनी नहीं, बल्कि मानवीय भी होती है।’
संक्षेप में, मध्यस्थता एक नई सोच है—एक ऐसा दृष्टिकोण जो हमें संघर्ष के दुश्चक्र से निकालकर सहयोग की दिशा में ले जाता है। इससे न केवल विवादों का निपटारा होता है, रिश्ते मजबूत होते हैं और समझौते टिकाऊ बनते हैं। यह आवश्यक है कि समाज और व्यक्तिगत स्तर पर हम सभी इस समग्र, संवादात्मक और करुणा प्रधान प्रक्रिया को अपनाएं। मध्यस्थता केवल कानून का विकल्प नहीं, बल्कि न्याय की मानवीय राह है—जिसमें न कोई हारता है, न कोई जीतता है, बल्कि सभी मिलकर समाधान तक पहुंचते हैं।
उल्लेखनीय है कि “मेडिएशन फॉर ए नेशन” के नाम से एक राष्ट्रव्यापी मध्यस्थता अभियान की शुरुआत की गई है जो 90 दिन तक चलेगा।