यह भी देखा गया है कि गरीब और वंचित तबके की महिलाएं अधिक संख्या में लापता होती हैं, जिससे यह संदेह और गहरा जाता है कि वे किसी संगठित अपराध गिरोह के हाथ लग रही हैं। इनके लापता होने के पीछे कई सामाजिक कारण भी जिम्मेदार हैं। घरेलू हिंसा, दहेज उत्पीडऩ, विवाह से असंतोष, पारिवारिक कलह जैसी स्थितियां महिलाओं को घर छोडऩे पर मजबूर करती हैं। कई बार वे स्वेच्छा से घर छोड़ती हैं, लेकिन इसके बाद उनकी कोई खोज-खबर नहीं मिलती।
अगर पुलिस और प्रशासन की मानें, तो लापता होने वालों में 60-70 फीसदी लोग कुछ दिन या महीनों में लौट आते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि समस्या कम हो रही है। असल सवाल यह है कि जो नहीं लौटते, उनका क्या होता है? अक्सर देखा जाता है कि पुलिस गुमशुदगी की शिकायतों को गंभीरता से नहीं लेती। कई मामलों में एफआईआर दर्ज होने में देरी होती है, जिससे अपराधियों को खुली छूट मिल जाती है। यह व्यवस्था की निष्क्रियता के साथ महिलाओं और कमजोर तबकों के प्रति उदासीनता को भी दर्शाता है।
हालांकि इस गंभीर समस्या का समाधान केवल प्रशासनिक स्तर पर नहीं हो सकता। समाज को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। जागरूकता अभियानों के माध्यम से लोगों को संवेदनशील बनाना, परिवारों में संवाद बढ़ाना और लड़कियों की सुरक्षा को प्राथमिकता देना आवश्यक है। सरकार को भी लापता होने वालों के मामलों की जांच के लिए विशेष टास्क फोर्स बनाकर ठोस कदम उठाने होंगे। – रमेश शर्मा