Opinion : शव के बंटवारे की मांग नैतिक पतन की पराकाष्ठा
बदलते सामाजिक परिवेश में यों तो रिश्तों को तार-तार करती खबरें आए दिन सामने आती रहती हैं। ऐसा इसलिए भी है कि भौतिकवादी दौर में व्यक्ति स्वार्थी होता जा रहा है। लेकिन मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ में अपने पिता के शव का आधा हिस्सा मांग लेने की घटना समूची मानवता को झकझोरने वाली है। ऐसी खबर […]
बदलते सामाजिक परिवेश में यों तो रिश्तों को तार-तार करती खबरें आए दिन सामने आती रहती हैं। ऐसा इसलिए भी है कि भौतिकवादी दौर में व्यक्ति स्वार्थी होता जा रहा है। लेकिन मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ में अपने पिता के शव का आधा हिस्सा मांग लेने की घटना समूची मानवता को झकझोरने वाली है। ऐसी खबर जो किसी के इंसान होने पर भी सवाल खड़े करती है। खून के रिश्तों में आई ऐसी कड़वाहट जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। टीकमगढ़ में पिता की मौत पर दो भाइयों ने ऐसा रूप दिखाया कि गमी में आए बुजुर्गों तक के चेहरों पर हवाइयां तैर गईं। दोनों में पिता के अंतिम संस्कार को लेकर विवाद इस हद तक पहुंच गया कि बड़े ने शव के दो हिस्से करने की मांग उठा दी। पारिवारिक विवादों की वजहें आमतौर पर एक जैसी होती हैं। कहीं संपत्ति के बंटवारे को लेकर विवाद तो कहीं ईष्र्या का भाव। आपस की ये लड़ाई किसी भी घर की दीवारों को कमजोर करने को काफी है। पुलिस के दखल से शव का बंटवारा किए बिना अंतिम संस्कार तो हो गया लेकिन यह घटना सैंकड़ों सवालों को पीछे छोड़ गई है। सबसे बड़ा सवाल तो यही कि संस्कारों में गिरावट का यह कौनसा दौर है? क्या कोई अपने जन्मदाता को लेकर ऐसी सोच रख सकता है? खून के रिश्तों में आखिर इतनी कड़वाहट कैसे हो सकती? कोई बेटा अपने पिता के शव के दो टुकड़े करने की बात कैसे कह सकता है?
पिता की मृत देह के सामने हक की मांग का ऐसा तांडव तो बेहद शर्मसार करने वाला ही है। नैतिक मूल्यों में आई गिरावट का दौर किसी से छिपा नहीं है। आपसी विवाद में खून के रिश्ते भी एक दूसरे के खून के प्यासे होने लगे हैं। संस्कारों में आती जा रही गिरावट इसकी सबसे बड़ी वजह है। पिछले वर्षों में हमारे यहां संयुक्त परिवार जैसी संस्था को जिस तरह से नुकसान हुआ है वह भी सबके सामने है। बार-बार यह कहा जाता रहा है कि भारतीयों की सबसे बड़ी ताकत संयुक्त परिवार है। संयुक्त परिवार, आपदा के हर मौके पर न केवल परिवार के सदस्यों बल्कि अपने दूसरे प्रियजनों की भी ढाल बनकर सामने आते रहे हैं। लेकिन एकल परिवारों ने रिश्तों में कटुता लाने का काम भी खूब किया है, इसमें संशय नहीं। बात-बात में माता-पिता का तिरस्कार, उन्हें वृद्धाश्रम भेजने और यहां तक कि उनसे मारपीट के मामले नैतिक मूल्यों में आती जा रही गिरावट के प्रतीक हैं। लेकिन टीकमगढ़ की यह घटना तो जैसे अमानवीयता की तमाम सीमाएं लांघने वाली है। ये गंभीर चिंतन का विषय भी है। परिवारों के लिए बड़ी सीख यही है कि आपसी विवाद घर की दहलीज पर ही खत्म करना जरूरी है।
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