Opinion : भारत की एआइ उड़ान को नए आसमान की उम्मीद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तीन दिवसीय फ्रांस दौरा सोमवार से शुरू हो रहा है। द्विपक्षीय संबंधों के विस्तार मिलने की उम्मीद के साथ-साथ यह दौरा इस लिहाज से भी अहम है कि प्रधानमंत्री आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) शिखर सम्मेलन की सह-अध्यक्षता भी करेंगे। इसमें अमरीका और चीन समेत करीब 90 देशों के नेता एआइ के नवाचार […]
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तीन दिवसीय फ्रांस दौरा सोमवार से शुरू हो रहा है। द्विपक्षीय संबंधों के विस्तार मिलने की उम्मीद के साथ-साथ यह दौरा इस लिहाज से भी अहम है कि प्रधानमंत्री आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) शिखर सम्मेलन की सह-अध्यक्षता भी करेंगे। इसमें अमरीका और चीन समेत करीब 90 देशों के नेता एआइ के नवाचार और विकास के साथ एआइ के गलत इस्तेमाल के खतरों पर भी विचार विमर्श करेंगे। सम्मेलन ऐसे समय हो रहा है, जब अमरीका के चैटजीपीटी और चीन के डीपसीक जैसे एआइ टूल्स को लेकर भारत समेत कई देश कड़े कदम उठा रहे हैं। भारतीय वित्त मंत्रालय ने अपने विभागों में इन टूल्स के इस्तेमाल पर यह कहकर रोक लगा दी कि इनसे गोपनीय डेटा लीक हो सकता है। ऑस्ट्रेलिया, इटली और ताइवान भी सुरक्षा का हवाला देकर डीपसीक पर पूर्ण या आंशिक प्रतिबंध लगा चुके हैं।
एआइ टूल्स के खिलाफ विभिन्न देशों की मोर्चाबंदी को लेकर फ्रांस के शिखर सम्मेलन में ऐसी वैश्विक रणनीति पर चर्चा हो सकती है, जो सुरक्षा चिंताओं को दूर करे। इसमें दो राय नहीं कि एआइ टूल्स ने दुनिया में तकनीकी तरक्की की नई जमीन तैयार कर दी है। इनसे लेखन और अनुवाद जैसे काम आसान हो गए हैं। इनके सकारात्मक इस्तेमाल से दुनिया का कायाकल्प हो सकता है। संभावनाओं से भरपूर किसी तकनीक को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। उसके उन पहलुओं का निराकरण होना चाहिए, जिनसे खतरे का अंदेशा हो। इतिहास गवाह है कि जो देश विज्ञान, प्रौद्योगिकी, बाजार और बदलाव के साथ कदम नहीं मिला सके, विकास की दौड़ में पीछे रह गए। इराक, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और सीरिया जैसे देशों के उदाहरण सामने हैं।
एआइ की अथाह शक्ति को देखते हुए भारत इसकी वैश्विक दौड़ में मजबूती से शामिल हो रहा है। पीएम कह चुके हैं कि भारत कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआइ) का ग्लोबल हब बनने की क्षमता रखता है। चैटजीपीटी और डीपसीक की तरह भारत खुद का फाउंडेशन एआइ मॉडल बनाने की तैयारी में जुटा है। इसे भारतीय भाषाओं और सांस्कृतिक विविधताओं को ध्यान में रखकर डिजाइन किया जाएगा। फ्रांस शिखर सम्मेलन में सहयोगी देशों के साथ इस मॉडल पर भी चर्चा के आसार हैं। सम्मेलन में एआइ के संचालन-परिचालन के लिए वैश्विक संगठन बनाने पर भी विचार होना चाहिए। एआइ टूल्स के गलत इस्तेमाल के बढ़ते खतरे के कारण इस तरह का संगठन जरूरी हो गया है, जो सभी देशों के सुरक्षा हितों का ध्यान रखे।
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