पाकिस्तान को रावी नदी का पानी रोकने का फैसला एक बड़ा संकेत
के. एस. तोमर, राजनीतिक विश्लेषक और स्तंभकार


भारत द्वारा पाकिस्तान की ओर बहने वाले रावी नदी के पानी को रोकने का निर्णय जल प्रबंधन और भारत-पाक संबंधों में महत्त्वपूर्ण बदलाव का संकेत देता है। शाहपुर-कंडी डैम और उज्ज बहुउद्देशीय परियोजना जैसी अधोसंरचना को तेजी से लागू कर भारत यह सुनिश्चित कर रहा है कि सिंधु जल संधि के तहत उसका हर बूंद पानी घरेलू सिंचाई, विद्युत उत्पादन और पेयजल आपूर्ति के लिए प्रयोग हो। इससे भारत की जल सुरक्षा मजबूत होगी और पंजाब व जम्मू-कश्मीर की कृषि उत्पादकता को बढ़ावा मिलेगा। हालांकि इस फैसले से पाकिस्तान को गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ेगा। कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था में सिंचाई क्षमता घटने से उत्पादन प्रभावित होगा, जिससे आंतरिक असंतोष बढ़ सकता है। यह जल संप्रभुता का दावा दक्षिण एशिया में जल कूटनीति की नई परिभाषा गढ़ता है।
वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए रावी नदी के पानी को पाकिस्तान जाने से रोकने की योजना बनाई। शाहपुर-कंडी बैराज के पूरा होने से जम्मू के कठुआ और सांबा जिलों में 1.27 लाख बीघा और पंजाब में 20,624 बीघा भूमि की सिंचाई संभव होगी। यह निर्णय 3,300 करोड़ रुपए की लागत से बन रही शाहपुर-कंडी परियोजना के पूरा होने से पहले लिया गया, जो दोनों राज्यों के किसानों के लिए वरदान साबित होगा। लगभग 32 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद कठुआ के 6.16 लाख और सांबा के 3.18 लाख निवासियों को सिंचाई का लाभ मिलेगा। पंजाब को इस परियोजना से 206 मेगावाट विद्युत उत्पादन का अतिरिक्त लाभ होगा, जिससे क्षेत्रीय बिजली संकट कम होगा। 1960 की सिंधु जल संधि के तहत भारत को पूर्वी नदियों रावी, ब्यास और सतलुज पर पूर्ण अधिकार प्राप्त है, जो 33 मिलियन एकड़ फीट (एमएएफ) पानी के बराबर है, जबकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों सिंधु, झेलम और चेनाब का नियंत्रण मिला। किंतु अधोसंरचना की कमी के कारण रावी की 2 एमएएफ जलधारा पाकिस्तान में बह जाती थी। अब भारत इस प्रवाह को रोककर अपने किसानों और उद्योगों के लिए जल उपयोग सुनिश्चित कर रहा है। पाकिस्तान ने हमेशा पश्चिमी नदियों पर भारत की जलविद्युत परियोजनाओं का विरोध किया है। बगलिहार (900 मेगावाट) और किशनगंगा (330 मेगावाट) बांध अंतरराष्ट्रीय पंचाट में विवादों के बाद पूरे हो सके। राटले (850 मेगावाट) अभी भी विवाद में है। अब भारत पूर्वी नदियों के जल उपयोग पर ध्यान केंद्रित कर रहा है ताकि पाकिस्तान को अनावश्यक रूप से भारतीय जल का लाभ न मिले। वर्ष 2019 में पुलवामा हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को अतिरिक्त जल प्रवाह रोकने की दिशा में ठोस कदम उठाए। भारत के अपने हिस्से के जल को जम्मू-कश्मीर और पंजाब की ओर मोडऩे की घोषणा की गई थी।
पाकिस्तानी पंजाब रावी सहित सिंधु की सहायक नदियों पर निर्भर है। जल प्रवाह रुकने से नारोवाल, सियालकोट और लाहौर के किसानों को जल संकट झेलना पड़ेगा। मध्य और दक्षिण पंजाब में जल संकट और गहरा सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, रावी के प्रवाह में कमी से सिंचाई जल 10-15त्न तक घट सकता है। रावी के पानी में कटौती से पाकिस्तानी किसानों को ट्यूबवेल पर अधिक निर्भर रहना पड़ेगा, जिससे बिजली और ईंधन की लागत बढ़ेगी। भूजल दोहन बढऩे से भविष्य में पानी की गंभीर कमी हो सकती है। जबकि भारत के किसानों को लाभ होगा। शाहपुर-कंडी डैम से पंजाब और जम्मू में 69,346 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होगी, जबकि उज्ज परियोजना जम्मू-कश्मीर में 31,380 हेक्टेयर भूमि को कवर करेगी। इससे गेहूं, धान, गन्ना, कपास और सरसों जैसी फसलों की पैदावार बढ़ेगी। इसके अलावा शाहपुर-कंडी (206 मेगावाट) और उज्ज (186 मेगावाट) परियोजनाएं कुल 392 मेगावाट बिजली उत्पन्न करेंगी, जिससे पंजाब और जम्मू में बिजली संकट कम होगा। भारत का यह कदम रणनीतिक और आर्थिक रूप से बड़ा परिवर्तन है। अब भारत सिंधु जल संधि के तहत अपने अधिकारों का पूरा लाभ उठा रहा है।
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