मासूम स्कूली बालिकाओं को प्रेमजाल में फंसाकर उनका यौन उत्पीड़न करने वालों के लिए तो राजस्थान ‘जन्नत’ बन गया है। हाल में अजमेर के निकट बिजयनगर में एक ऐसे ही गिरोह की कारगुजारियां सामने आई हैं। लड़कियों से मित्रता कर उनका यौन शोषण करके वीडियो बनाने और ब्लैकमेल करने का कुत्सित चक्र उजागर हुआ है। इस गिरोह पर राजनीतिक सरपरस्ती के संकेत भी सामने आ रहे हैं। बरसों पहले भी अजमेर में ही एक इससे भी बड़ा अश्लील छायाचित्र ब्लैकमेल कांड हुआ था। उस समय भी राजनेताओं के चेहरे सामने आए थे, जिन्हें हमारी काबिल पुलिस ने चतुराई से बचा लिया था। डर है इस बार भी ऐसा ही न हो।
मासूम लड़कियों और महिलाओं का जीवन बर्बाद कर देने वाली ये घटनाएं पुलिस और राजनेताओं के लिए आंकड़ों से ज्यादा कुछ नहीं होतीं। संवेदनाओं का न तो हमारे राजनेताओं के जीवन में कोई स्थान होता है, न ही अफसरों के जीवन में। हाल ही भोपाल से जयपुर आ रही एक बस में महिला यात्रियों के सामने पोर्न वीडियो चलाने और महिला सवारियों की वीडियो बनाने का घिनौना मामला सामने आया। जब परिवहन विभाग के एक बड़े अफसर से कार्रवाई के बारे में पूछा गया तो उनका निर्लज्ज जवाब था- ‘हमारे पास कोई शिकायत नहीं आई है। यात्री शिकायत कर सकते हैं।’ यानी मामला सामने आने के बावजूद शिकायत का इंतजार है। अपने आप कुछ नहीं करेंगे। एक तरह से वह कह रहे हैं- हमारी तरफ से पोर्न फिल्म चलाने की छूट है। जब अफसरों का व्यवहार महिलाओं के प्रति इतना संवेदनहीन है तो राज्य में महिला अपराध बढ़ने से कौन रोक सकता है?
राजनेताओं के लिए भी महिला अपराधों पर नियंत्रण शायद आखिरी प्राथमिकता है। राजस्थान में इतने मामले सामने आ रहे है पर कड़ा कदम उठाना तो दूर, कठोर कार्रवाई की बात तक मुंह से नहीं निकलती। राजस्थान क्या देशभर में यही हाल है। मध्य प्रदेश में महिला अपराध के प्रतिदिन 85 मामले दर्ज हो रहे हैं। निर्भया कांड के बाद ‘रेयरेस्ट’ केस में बलात्कारियों को फांसी देने का कानून बन चुका है, पर इसका भी कोई असर दिखाई नहीं देता। हेल्पलाइन, पैनिक बटन, बसों में वीडियो कैमरा जैसी बातें भी होती है, पर कुछ दिनों में ये व्यवस्थाएं नकारा हो जाती हैं। इन अनियमितताओं के लिए बसों, कैब्स पर कभी बड़ी कार्रवाई नहीं की जाती।
सरकारें भी नाकारा हो रही हैं और अफसर भी। बल्कि बढ़ते महिला अपराधों के लिए महिलाओं को ही मर्यादा में रहने के उपदेश देने लग जाते हैं। जब कोई नहीं सुनेगा तो बचाव कौन करेगा। ऐसे में राज्यपाल बागड़े की यह अपील कि ‘ईंट का जवाब पत्थर से देना चाहिए’ एकदम सामयिक और सटीक नजर आती है। समाज को अपनी सुरक्षा के रास्ते खुद ही निकालने होंगे। खासतौर से युवाओं और महिलाओं को स्वयं ही समाजकंटकों को सबक सिखाने के लिए लिए आगे आना होगा। अपने निकम्मेपन के कारण तंत्र जनता को मजबूर कर रहा है कि वह अपराधियों से स्वयं निपटे।