जयपुर ही नहीं, पूरे राजस्थान में और राजस्थान ही क्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश में अवैध निर्माण, अतिक्रमण, नियम विरुद्ध निर्माण, मास्टर प्लानों का उल्लंघन आम बात हो गई है। ऐसे निर्माणों की रोकथाम के लिए नियुक्त कर्मचारी से लेकर, अफसरों और मंत्री तक की पूरी शृंखला होती है, जो यह सुनिश्चित करती है कि अवैध निर्माण होते रहें और उनकी जेबों में उनका हिस्सा आता रहे। बल्कि संबंधित पदों की ऊंची-ऊंची बोलियां लगती हैं।
जयपुर की ही बात करें। परकोटे में पुराने भवनों को तोड़ कर बड़े-बड़े शो-रूम, व्यावसायिक कॉम्प्लेक्स बनाने पर रोक है। पर क्या ये निर्माण रुक पाए हैं। हैरिटेज नगर निगम की महापौर, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जोनल अधिकारी, निरीक्षक सब यूनेस्को के ‘हैरिटेज सिटी’ के तमगे को पलीता लगाने में लगे हैं। महापौर को या तो राजनीति से फुर्सत नहीं है या सड़कों पर निरीक्षण की ड्रामेबाजी से। अफसर और संबंधित कर्मचारी हर अवैध निर्माण की पाप की कमाई में अपना हिस्सा गिनने और ऊपर का हिस्सा पहुंचाने में लगे हैं। क्या नगरीय विकास सचिव, मुख्य सचिव और नगरीय विकास मंत्री इस खुले भ्रष्टाचार से अंजान होंगे? अब तो ‘सील’ लगाने का खेल भी शुरू हो गया। जेबें ढीली करो और ‘सील’ हटवाओ।
हमारे जनप्रतिनिधि ऐसे हैं जो भावनाएं भड़का कर वोट बटोरने में तो सबसे आगे रहते हैं, पर शहर के सुनियोजित विकास के नाम पर सिर्फ घड़ियाली आंसू बहा कर कर्त्तव्य पूरा कर देते हैं। सी-स्कीम जैसी आवासीय कॉलोनी को व्यावसायिक बना कर रख दिया। प्राइवेट अस्पताल, होटल, रेस्टोरेंट, शो-रूम आज क्या नहीं है सी-स्कीम में। जब सी-स्कीम का यह हाल है तो शहर के दूसरे हिस्सों की स्थिति कैसी बदतर होगी- इसकी कल्पना की जा सकती है।
जगह-जगह मास्टर प्लान की धज्जियां उड़ा कर अट्टहास करना राज्य सरकारों की आदत हो गई है। अतिक्रमण हटाने के नाटक तब किए जाते हैं जब जनप्रतिनिधियों और अफसरों को उनका हिस्सा नहीं पहुंचता। इन सब में नुकसान होता है आम नागरिक का। पहले तो उसे नियम विरुद्ध निर्माण की छूट दी जाती है। एक मोटी रकम की वसूली के बाद। कोई दबाव आता है तो उसे ध्वस्त कर दिया जाता है। नागरिक हो या भवन निर्माता-अब तो ध्वस्त करने का पैसा भी उसी से मांगा जाता है। फिर इतनी बड़ी नाकारा और लालची मशीनरी क्यों लगा रखी है। उनको कोई सजा क्यों नहीं दी जाती। पहले तो अवैध वसूली करते समय आंखें बंद कर लेते हैं और फिर ध्वस्त करने पहुंच जाते हैं। ऐसा घनघोर पाप करते समय उनकी आत्मा बिल्कुल भी नहीं कांपती। शायद पाप की कमाई से बच्चे पालने में उन्हें आनंद आने लगा है।
नगर निगम ही नहीं, जयपुर विकास प्राधिकरण, आवासन मंडल, नगर विकास न्यास-सब भ्रष्टाचार के अड्डे बने हुए हैं। प्रशासनिक सेवाओं के बड़े-बड़े अफसर लगाए जाते हैं। वे भी या तो भ्रष्ट तंत्र की कठपुतली बन जाते हैं या स्वयं भ्रष्टाचार में डूब जाते हैं। ऐसे में अदालतों के आदेश उनके लिए मखौल बनाने की विषय-वस्तु बन जाते हैं। कानून को भी यह देखने की आवश्यकता नहीं लगती कि उसके आदेशों की कैसी दुर्गति हो रही है।