हमारे सामने आर-पार की लड़ाई के लिए इससे अच्छा समय नहीं आएगा। मत चूके चौहान! इस अवसर पर सर्जिकल स्ट्राइक भी काम नहीं आएगी। सिंधु जल समझौता स्थगित करना उचित कदम है, किन्तु हमें इस पर दृढ़ता से टिके रहना है। पाकिस्तान मानवीय संवेदना के नाम पर मगरमच्छी आंसू टपकाएगा। हमें इजराइल का मार्ग अपनाना चाहिए। इसकी शुरूआत पाक के कब्जे वाली कश्मीर की धरती से कर देनी चाहिए। वह तो हमारी ही है। उसे फिर से छीन लेना भी हमारा अधिकार है। दुनिया को यह संदेश देना भी आज की जरूरत है।
‘मोदी जी आगे बढ़ो, हम तुम्हारे साथ हैं।’ पूरा देश और पूरा विपक्ष आपके साथ है। संकट में सदा ही साथ रहा है। जरूरत हो तो मेरे जैसे सेवानिवृत्त भी अपनी यूनिट में लौट सकते हैं। किन्तु पाकिस्तान को तैयारी करने का अवसर न दें। एक तो सदा से झूठा और छद्मवेशी रहा है, ऊपर से चीन का हाथ उसकी पीठ पर है। वैसे तो चीन को भी अभी मार्केट के लिए भारत का सहारा चाहिए। अमरीका ने उसके माल पर टैरिफ का जो खेल खेला है, उसे अपना सरप्लस माल बेचना होगा। उसकी हालत अमरीका जैसी ही हो रही है। हमारे सामने ऐसी कोई मजबूरी नहीं है। हमारी स्थिति मजबूत है। सिवाय इसके कि कश्मीर में ही कुछ देशद्रोही बैठे हैं, जो आतंकियों का साथ देते हैं।
हमले से पूर्व भी आतंकियों ने कश्मीर में बैठक की थी, हमले की साजिश रची थी, सुरक्षा एजेंसियों को इसकी जानकारी थी। फिर भी यह हमला हो गया। मान्यवर मोदी जी! यह पहला अवसर नहीं है, जब इंटेलीजेंस, सुरक्षा एजेंसियां तथा सीआरपीएफ के रहते हुए इतनी बड़ी दुर्घटना, शर्मनाक दुर्घटना घट गई। इतिहास गवाह है पिछले सभी बड़े आतंकी हादसों में घटना होने के बाद एजेंसियां सक्रिय होती हैं। संसद का उदाहरण यह देश शायद ही भूल पाए। तब हमारी पुलिस और सुरक्षा बलों में अन्तर ही क्या रह जाएगा? इनकी भी समीक्षा कर बड़े कदम उठाने चाहिए।
यह भी पढ़ें न रहेेगा बांस, न बजेगी बांसुरी उत्तर-पूर्व की सीमाओं से करोड़ों लोग अवैध रूप से देश में घुस गए, किसके सहयोग से? और आज भी बैठे हैं।
मान्यवर! अभी समय गंवाने का अवसर नहीं है, न ही अधिकारियों की रिपोर्ट का इंतजार आवश्यक है। पिछले 75 वर्षों में ये लोग भारत-पाक वार्ता को किसी ठोस अंजाम तक नहीं पहुंचा पाए। देश केवल आपको देख रहा है। आपकी निर्णायक शक्तियों से परिचित है। आपने देशहित में कई बार साहसिक निर्णय लिए हैं, कड़े विरोध को दरकिनार करते हुए। कई साहसिक कानून बदले हैं, कई नए बनाए भी हैं। प्रतीक्षा किसकी? शकुनि मामा भी गंधार से आया था। हमारी आबरू पर बार-बार हाथ डालता है। काट दें इन हाथों को। न रहेेगा बांस, न बजेगी बांसुरी।