Patrika Opinion : चिंताजनक है अमीरों के देश छोडऩे की प्रवृत्ति
दुनिया के विकसित और समृद्ध कहे जाने वाले देशों में मिलने वाली सुविधाएं हर किसी को आकर्षित करती है। भारत समेत दुनिया के तमाम दूसरे कई देशों में धनकुबेर ही नहीं बल्कि थोड़ी सी भी समृद्धि हासिल करने वाले भी दूसरे देशों में बसने को प्राथमिकता देने लगे हैं। इंटरनेशनल फर्म हेनली एंड पार्टनर्स ने […]
दुनिया के विकसित और समृद्ध कहे जाने वाले देशों में मिलने वाली सुविधाएं हर किसी को आकर्षित करती है। भारत समेत दुनिया के तमाम दूसरे कई देशों में धनकुबेर ही नहीं बल्कि थोड़ी सी भी समृद्धि हासिल करने वाले भी दूसरे देशों में बसने को प्राथमिकता देने लगे हैं। इंटरनेशनल फर्म हेनली एंड पार्टनर्स ने दुनिया के धनकुबेरों के अपना देश छोड़ देने की प्रवृत्ति को लेकर आसन्न संकट की ओर जो ध्यान आकृष्ट किया है, उस पर हमें भी चिंता करने की जरूरत है। यह इसलिए भी कि भारत में भी थोड़ा सा पैसा आते ही दूसरे देश में बसने की प्रवृत्ति खूब नजर आने लगी है। अपने देश में ऐसे लोगों को रहन-सहन से लेकर खान-पान, स्वतंत्रता और स्वच्छंदता हर बात में कमी नजर आने लगती है। देश में पले-बढ़े लोग जब इस तरह के अवसरों की ताक में रहते हैं तो यह सवाल भी उठना स्वाभाविक है कि आखिर अचानक ऐसे लोगों को अपने देश में रहना क्यों भारी लगने लगता है?
विदेश मंत्रालय का आंकड़ा है कि किसी न किसी कारण से विदेश में जाकर बस गए भारतीयों की संख्या 3.5 करोड़ से ज्यादा है। यह मानव संसाधन का बड़ा आंकड़ा है, जिसका लाभ भारत को मिलना चाहिए। महज धन कमाने की लालसा ही इसकी वजह हो सकती है, ऐसा भी नहीं है। हमारे देश के संसाधनों के जरिए अमीरी के मुकाम तक पहुंचने वालों के बारे में यह विचार तो करना ही होगा कि आखिर दूसरे देशों में ऐसा क्या है जिनके मोह में हमारे लोग अपनी जड़ों से कटकर वहां बसने को आतुर नजर आते हैं। बहुत ही अव्यावहारिक न हो, तो ऐसा वातावरण बनाने का प्रयास होना चाहिए जिससे ये धनपति देश की आर्थिक समृद्धि में सहयोगी बन सकें। छोटे से बड़े बनने तक जिस शख्स को हमारे यहां सींचा गया हो, वह पौधा, पेड़ बनने के बाद दूसरे देश में फल देने लग जाए, यह देश के हित में कतई नहीं होगा। दूसरे देश में बसने की जो बड़ी वजहें हैं उनमें बेहतर जीवन स्तर, परिवहन, चिकित्सा व शिक्षा की सुविधा तथा कारोबार या रोजगार के दूसरे अच्छे अवसर सामने आते हैं।
इसमें दो राय नहीं कि हमारे देश में पिछले दशकों में इन सभी मोर्चों पर काफी प्रगति हुई है। इसके बावजूद लोगों का दूसरे देशों में बसने का सिलसिला जारी है तो यह माना जाना चाहिए कि अभी इस दिशा में काफी- कुछ करना बाकी है। मेहनत विदेशी चकाचौंध से अभिभूत इस नवधनाढ्य वर्ग को रोकने की ही नहीं, बल्कि उन लाखों युवाओं के लिए आधार बनाने में भी करनी होगी, जो रोजगार के बेहतर अवसरों की तलाश में विदेश चले जाते हैं और देर-सवेर फिर वहीं के होकर रह जाते हैं।
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