भारत का अंतरिक्ष में बढ़ता वर्चस्व, उपलब्धियां और भविष्य की योजनाएं
रमेश चंद्र कपूर, खगोलविद, खगोल विज्ञान के इतिहास पर शोधरत
डॉ. विक्रम साराभाई के तत्वावधान में भारतीय वैज्ञानिकों की एक समिति (इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च) की पहली गोष्ठी 22 फरवरी 1962 को हुई थी, जिसने देश में अंतरिक्ष कार्यक्रमों की शुरुआत की नींव रखी थी। विश्व में अंतरिक्ष के क्षेत्र में बढ़ती सक्रियता के मद्देनजर इस समिति ने 15 अगस्त 1969 से इसरो के रूप में एक सशक्त संगठन का रूप ले लिया। बीते 62 वर्ष हमारे इस महान स्वप्न के साकार होने की एक स्वर्णिम यात्रा है जिसे भारतीय वैज्ञानिकों तथा इंजीनियरों की योग्यता और परिश्रम ने साकार किया है। वर्ष 2024 में इसरो ने कई कीर्तिमान स्थापित किए और नए प्रक्षेपणों से भविष्य के कार्यक्रमों के पथ को सुदृढ़ और प्रशस्त कर दिया। बहुप्रतीक्षित स्पेडेक्स मिशन को 30 दिसंबर 2024 को सफलतापूर्ण लॉन्च कर इसरो ने देश को नए साल का शानदार तोहफा दिया। भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की पृथ्वी निकट कक्षा में स्थापना का लक्ष्य है। यह कई घटकों में बंटी संरचना होगी जिन्हें अंतरिक्ष में ही कक्षा में रहते हुए बेहद पेचीदा प्रक्रियाओं में जोड़ दिया जाएगा। यह कार्य कई चरणों में होगा जिसके वर्ष 2028-35 के दौरान संपन्न होने की आशा की जाती है।
मानव-रहित यान एचएलवीएम-3 जी1 का प्रक्षेपण वर्ष 2025 में किया जाएगा। इस शृंखला में इसी वर्ष में एक और मिशन एचएलवीएम-3 जी2 की भी योजना है। यह दोनों यान मानव सहित यान की ही भांति होंगे, किंतु इनमें यांत्रिक व्योमयात्री (रोबो) भेजे जाएंगे। वर्षों में चले विभिन्न परीक्षणों की लंबी प्रक्रिया में चार अंतरिक्ष यात्रियों को रूस और भारत में इस अपूर्व यात्रा के लिए प्रशिक्षित किया गया है। इसरो के अनुसार वर्ष 2026 में एचएलवीएम-3 राकेट तीन अंतरिक्ष यात्रियों को जमीन से 400 किमी ऊंची पृथ्वी निकट कक्षा में ले जाएगा। यात्री अंतरिक्ष में तीन दिन कक्षा में रहते हुए पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे और अनेक वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे। यह मिशन इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह विशुद्ध देशी है। इसमें देश के अनेक संस्थानों और उद्योगों की भागीदारी है। इन्हीं चुने हुए यात्रियों में से एक अंतरिक्ष यात्री को ह्यूस्टन में प्रशिक्षण के बाद इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में भेजे जाने की योजना है। इसके अलावा वर्तमान में जो सबसे महत्त्वपूर्ण मिशन है, वह है निसार। यह नासा और इसरो का संयुक्त प्रयास है। इस मिशन पर 2014 से काम चल रहा है जिसे मार्च 2025 में 747 किमी ऊंची कक्षा में स्थापित किया जाना है। यह 2800 किलोग्राम वजन का है और इसमें गीगाहट्र्ज तरंगों पर काम करने वाले दो रडार हैं। यह उपग्रह अब तक का सबसे महंगा और सूक्ष्म स्तर पर काम करने वाला उपग्रह होगा। यह अनवरत मौसम, वन-प्रेक्षण, भूकंप गतिकी, ग्लेशियरों और ज्वालामुखियों पर जानकारी जुटाएगा, यहां तक कि पर्यावरण संबंधी कुछ सेंटीमीटर स्तर के होने वाले परिवर्तनों को भी पकड़ सकेगा।
इसके अलावा इसरो ने भारतीय संस्थानों के लिए वैज्ञानिक मिशन तैयार किए हैं। सौर मंडल में चंद्रमा पर और मंगल ग्रह तक हम अपनी प्रयोगशालाएं पहुंचा चुके। इसरो की नजर इनसे हटी नहीं है। मंगल मिशन-2 पर काम चल रहा है जिसमें लैंडर भी होगा। इसके अलावा एक महत्त्वपूर्ण मिशन है शुक्र ग्रह के लिए वीनस ऑर्बिटर, जिसे इसकी कक्षा में स्थापित किया जाएगा। इस उपग्रह को एलवीएम-3 के जरिये मार्च 2028 में प्रक्षेपित किया जाएगा। अब पूछिए चंद्रमा की जमीन को तो हमने छू लिया किंतु उस पर हमारे इंसानी कदम कब पड़ेंगे? वह दिन भी दूर नहीं, वहां हम 2040 में होंगे, और हां, वहां स्टेशन तो बनाना ही होगा। इन सब मिशनों पर तैयारियां बहुत समय से चल रही हैं।
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