यह तो केवल बानगी थी, जबकि प्रदेशभर में ब्लड बैंकों की मिलीभगत से खून का काला कारोबार किया जा रहा है। जिस पर समय रहते रोक लगनी जरूरी है, जिससे रक्तदान करने वालों का विश्वास कायम रह सके। इससे पहले भी रक्त में मिलावट कर बेचने का खुलासा हो चुका है। वहीं प्रदेश के सबसे बड़े सवाईमानसिंह अस्पताल में भी खून की दलाली के मामले सामने आ चुके हैं। हाल ही मकराना में हुई रक्त की कालाबाजारी की घटना इसका ताजा उदाहरण है। वर्ष 2022 में भी खून में मिलावट करने का बड़ा मामला सामने आ चुका है।
उस समय लखनऊ में दान में मिले रक्त में मिलावट कर उसकी मात्रा बढ़ाने और फिर दोगुने दाम में बेचने का खुलासा टीमों ने किया था। रक्त के इस काले कारोबार के तार राजस्थान के ब्लड बैंकों से भी जुड़े थे। कारोबारी जयपुर, सीकर और चौमूं के 8 विभिन्न ब्लड बैंकों से रक्त ले जाकर यह कारोबार कर रहे थे। उस समय चौमूं के दोनों ब्लड बैंकों को सीज कर दिया गया था। जांच के बाद वे फिर से चालू हो गए। ऐसे मामलों में ब्लड बैंकों की मिलीभगत भी जगजाहिर है।
करीब दो साल पहले केंद्र सरकार की ओर से स्वैच्छिक रक्तदान को बढ़ावा देने के लिए जारी आंकड़ों के मुताबिक रक्तदान के मामले में राजस्थान देशभर में दूसरे स्थान पर था। ऐसे में रक्त का काला कारोबार बढ़ता जा रहा है। हालांकि सरकार ने नियम कायदे बना रखे हैं, लेकिन नियमों को ताक में रखकर ब्लड बैंक संचालक मोटे मुनाफे के चक्कर में अपना ईमान बेच रहे हैं और लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। ऐसे में सरकार को चाहिए कि सख्ती से इस काले कारोबार पर रोक लगाई जाए।