राव उदाजी को जोधपुर से बंट में जैतारण दिया गया था। उस दौर में कई बार भाई बंट में दिया गया इलाका बलपूर्वक जीत कर लेना पड़ता था। उदाजी ने जैतारण जीत कर नया राज्य स्थापित किया।
राव उदाजीवि सं 1539 वैशाख सुदी 3 को जैतारण की राजगद्दी संभाली। उनका राजतिलक पुरोहित भोजराज ने किया। इस कारण उन्हें गांव ‘तालकिया’सांसण (सीख) में दिया गया। जैतारण पर पुन: चढ़ाई हुई तो राव उदाजी ने यह युद्ध भी जीता। इस युद्ध में बारहठ खेतसी जी वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी संतान को राव ऊदाजी ने ग्राम गियासणी व बासणी दिए थे जहां अब भी उनके वंशज रहते हैं। राव उदाजी ने जालोर के भवराणी स्थान पर युद्ध में वीरत्व प्रगट कर शत्रुओं का नाश किया था। मेड़ते के राव वीरमजी जैतारण से जोड में चरते हुए घोड़ों को घेर कर ले गए। राव उदाजी ने पीछा कर लीलिया गांव के तालाब पर वीरमजी को इस अनुचित कृत्य का दण्ड दिया। दण्ड स्वरूप कटार जब्त कर ली गई। राव उदाजी अपने पिता महाराज कुमार सूजाजी के साथ रह कर कई युद्धों में भाग लिया और पराक्रम दिखा कर प्रसिद्धि पाई। इनके राज में सुख-चैन व न्याय का शासन था। राव उदाजी ने जैतारण में किले की नींव विसं 1541 माघ सुदी में राखी। राव उदाजी ने जैतारण में श्री गोपाल जी का मन्दिर बनवा कर गोपालद्वारा की स्थापना की तथा पूजा व्यवस्था के लिए कुआं व 200 बीघा जमीन गोपालद्वारा को अर्पण की।राव ऊदाजी ने लौटोती में सूजा सागर नाम का बड़ा तालाब बनाया।
राव उदाजी अपने सहोदर भाई प्रागजी से बहुत स्नेह रखते थे। प्रागजी भी उदाजी को पिता समान ही आदर देते थे। उदाजी ने अपने पुत्रों से पहले जागीरी बंट में दी थी। परगना जैतारण का गांव देवली उदावतान (रेख 13000 रु) तथा परगना मेड़ता का गांव लिलिया (रेख 7000 रु) कुल 20 हजार का पट्टा प्रदान किया। इनके वंशज प्रागदासोत उदावत कहलाए जो अभी लीलिया में रहते हैं। वि सं, 1567 वैशाख सुदी 15 को राव उदाजी का जैतारण में स्वर्गवास हुआ। इनके 4 रानियां थी।