सम्मेलन की अध्यक्षता करने वाले देश की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण थी, क्योंकि उनके पास सम्मेलन की निर्णय प्रक्रिया में विशेष अधिकार थे। तीन प्रमुख प्राथमिकताओं पर विशेष ध्यान केंद्रित किया गया। जलवायु न्याय, छोटे द्वीप देशों-विकासशील देशों के लिए जलवायु वित्त व तकनीकी सहायता और प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित देशों के लिए पुनर्निर्माण कार्यक्रम की शुरुआत। इनके तहत, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए वैश्विक सहयोग और कार्यान्वयन को बढ़ावा देने का प्रयास किया गया। कोप-29 में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने के लिए कई महत्त्वपूर्ण नीतियां बनाई गईं। पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों जैसे कोयला, तेल और गैस से नवीन ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ावा दिया गया। सौर, पवन और जल ऊर्जा जैसी नई ऊर्जा के प्रसार के लिए विशेष सिफारिशें की गईं। भारी उद्योगों और परिवहन क्षेत्र में कड़े उत्सर्जन मानकों को लागू करने की भी सिफारिश की गई। इसके अतिरिक्त, विकासशील देशों को ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव के लिए आर्थिक और तकनीकी सहायता प्रदान करने के उपाय भी किए गए।
वनों के संरक्षण और पुन:स्थापना के लिए भी ठोस कदम उठाए गए। ‘रेड प्लस’ जैसी योजनाओं के तहत वन आधारित आजीविका साधनों को बढ़ावा दिया गया। साथ ही, जलवायु वित्त पोषण के लिए एक वैश्विक कोष की स्थापना की गई, जिसका उद्देश्य उन देशों की मदद करना था जो जलवायु परिवर्तन के सबसे बड़े प्रभावों का सामना कर रहे थे। कोप-29 के परिणामस्वरूप, कार्बन न्यूट्रलिटी की दिशा में भी कदम उठाए गए। कई देशों ने 2050 तक अपने कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने के लिए अपनी नीतियां बनी हैं। कार्बन व्यापार प्रणाली-समायोजन कार्यक्रम को बढ़ावा दिया गया, ताकि देशों को अपने उत्सर्जन लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिल सके।
कोप-29 में अमरीका, यूरोपीय संघ, भारत और चीन जैसे प्रमुख देशों ने नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में नई तकनीकों के कार्यान्वयन-हरित प्रौद्योगिकी में निवेश के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। छोटे द्वीप देशों और विकासशील देशों ने जलवायु न्याय के लिए विशेष समर्थन की मांग की और पुनर्निर्माण सहायता की आवश्यकता को उठाया। कोप-29 ने यह स्पष्ट किया कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैश्विक एकजुटता और सहयोग अनिवार्य है। सम्मेलन ने जलवायु नीति में एक नई दिशा दी है और यह आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन को कम करने में सहायक सिद्ध होगा। इसका प्रभाव लंबे समय तक रहेगा, क्योंकि यह देशों के बीच सहयोग और साझेदारी को भी प्रोत्साहित करता है। कोप-29 भविष्य में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा।