Gulab Kothari Article Sharir Hi Brahmand: आत्मा ही शरीर का चालक है। परा प्रकृति का क्षेत्र है। शरीर अपरा-जड़-क्षेत्र है। हम शरीर का ही अस्तित्व मानकर जीते हैं, कर्म करते हैं। आत्मा को जानने के प्रश्न हमारे मन में उठते ही नहीं। हां, शास्त्रों को सुनते समय हम आत्मा का विवेचन भी सुनते हैं, किन्तु स्वयं से जोड़ नहीं पाते। अपने से भिन्न किसी वस्तु को आत्मा मान लेते हैं। शरीर ही ब्रह्माण्ड शृंखला में सुनें पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी का यह विशेष लेख- जीवन गति का नियामक है मन
जयपुर•Dec 20, 2024 / 08:43 pm•
Hemant Pandey
सृष्टि का आधार यज्ञ है। सोम को अग्नि में डालकर तद्गत पदार्थों का विशकलन करके उन पदार्थों को वापस उसी आधिदेविक मण्डल में पहुंचा देना यज्ञ है। जहां अग्नि प्राण प्रधान है, वहीं यज्ञ सम्पन्न होता है। यज्ञ में ज्वाला का अर्चि भाग भृगु होता है, तथा अंगारे अग्नि।
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