सांसद और विधायक असली जनसेवक बनें और सिर्फ एक ही कार्यकाल की पेंशन लें। नेताओं को दल बदलने से पहले अफसरों की तरह कूल ऑफ टाइम काटना पड़े। जातिवादी राजनीति करने वाली पार्टियों पर प्रतिबंध लगे। संविधान की दुहाई देने वाल दल व नेता उप प्रधानमंत्री, उपमुख्यमंत्री जैसे ग़ैर संवैधानिक पद न तो क्रियेट करें न उन पर तैनाती करें। आरक्षित सीटों पर किसी को भी एक बार से ज्यादा चुनाव लड़ने का मौका न मिले। एक बार जीतने या कार्यकाल पूरा होने के बाद उसे सामान्य सीट से मैदान में उतरना पड़े। अल्पसंख्यक शब्द जो मुसलमानों के लिए रूढ़ हो गया है, उसका प्रयोग बंद हो। क्योंकि यह शब्द संविधान का भी प्रतिनिधित्व नहीं करता। जिला पंचायत अध्यक्ष का निर्वाचन मेयर की तरह सीधे जनता से हो। तुष्टिकरण बंद हो। मुफ्त की चीजें देने का वादा करके चुनाव जीतने का चलन बंद हो। मिलावट के खिलाफ अभियान सरकार के एजेंडे में ईमानदारी से आ जाये। कम से कम देश का कोई एक शहर विकास के सभी पैमानों पर खरा उतरने लायक़ हो जाये। महापुरुषों को एक दूसरे से लड़ाने की परंपरा पर विराम लगे। नेताओं में यह कहने का साहस आपके कि संविधान निर्माण में 298 लोग और थे। राजेंद्र बाबू संविधान सभा के अध्यक्ष थे। अंबेडकर जी की देन रिजर्व बैंक व पॉवर ग्रिड भी है। नेताओं के दिल बड़े हों। उनकी ज़बान सोच समझ कर चले। मीडिया को यह साहस हो सके कि वह एजेंडे सा बाहर निकलकर मेरिट पर काम करे। ऊल जूलूल बयानों व हरकतों को कम जगह दे। बच्चों की गूगल अंकल पर निर्भरता कम हो। लोग मोबाइल पर आश्रित होने की जगह उसे केवल अपने लिए उपयोगी बनायें। क्रिकेट उद्योग की जगह खेल बन जाये। बच्चे और युवा सिर्फ खेल देखने की बजाए खुद भी खेलें। उम्मीदों की फेहरिस्त तो खत्म होते न खत्म होगी बस उम्मीद यही है कि कुछ उम्मीदें तो इस साल पूरी हो जाएं।
2025 तो पचास के पड़ाव का आधा रास्ता है। आधा तो बीत चुका है पर बदला कुछ नहीं है। बाकी आधे को बचाना बनाना हम सबकी जिम्मेदारी है क्योंकि जिन्होंने देश को नाउम्मीद किया है उन सरमायेदारों को भी हमीं ने बनाया है। आइए तो हम सब नए साल को वाकई में एक नया साल बनाने का संकल्प लें।