छत से रिसता पानी, दीवारों से झरता प्लास्टर
स्कूल में कुल 17 कमरे हैं, पर इनमें से 15 कमरों और बरामदों की हालत ऐसी है कि कहीं भी प्लास्टर अचानक गिर सकता है। बरसात के मौसम में छत से टपकता पानी किसी भी दिन किसी बच्चे की किताब नहीं, सिर भिगो सकता है। यही वजह है कि बारिश में बच्चे क्लासरूम के अंदर नहीं बैठते-बरामदे में या पेड़ की छांव तले पढ़ाई करते हैं, ताकि अगर छत का कोई हिस्सा गिर भी जाए तो कोई हादसा न हो।
बिना चारदीवारी स्कूल या आवारा जानवरों की सराय?
स्कूल के चारों ओर कोई दीवार भी नहीं है। लिहाज़ा, आसपास के मवेशी खुलेआम क्लासरूम तक में घुस आते हैं। कभी गाय-कुत्ते बच्चों के साथ बैठ जाते हैं, तो कभी मैदान में चरते हैं। पढ़ाई का क्या माहौल होगा, यह सोचने की बात है।
रसोई से लेकर शौचालय तक बदहाल
यहां मिड-डे मील बनता है, पर जिस रसोई में खाना पकता है, उसकी हालत खुद किसी भट्टी से कम नहीं। बरसात में दीवारें सीलन से भीग जाती हैं। शौचालय भी सालों से बिना मरम्मत के बस किसी तरह खड़ा है। प्रधानाचार्य का कमरा हो या स्टाफ रूम — सब जगह एक ही कहानी है — टूटे प्लास्टर, सीलन और दरारें।
60 नामांकन, आधे ही हाजिर
कागज़ों में स्कूल में कक्षा 1 से 8 तक करीब 60 बच्चे दर्ज हैं, मगर उनमें से आधे ही कभी-कभार स्कूल आते हैं। जो आते भी हैं, उनके मां-बाप डर में जीते हैं कि कहीं पढ़ाई के नाम पर कोई हादसा न हो जाए। कई अभिभावक तो बच्चों को पास के निजी स्कूलों में भेजने लगे हैं, क्योंकि यहां तो जान जोखिम में डालनी पड़ रही है।
बरसात में ‘अघोषित छुट्टी’
बरसात का मौसम आते ही यह स्कूल ‘अघोषितछुट्टी’ का अड्डा बन जाता है। छत से गिरते पानी, बिजली के करंट के डर और कमरे में पानी भर जाने से शिक्षक खुद भी डर जाते हैं। नतीजा — कभी छुट्टी तो कभी बच्चों को घर भेज देना।
कई बार गुहार, पर किससे?
ग्रामीणों ने, अभिभावकों ने, स्कूल प्रशासन ने हर किसी ने शिक्षा विभाग से लेकर नेताओं तक कई बार शिकायत की। स्कूल के लिए तीन नए कमरे बनाने की मंजूरी भी डीएमएफटी फंड से विधायक हरिसिंह रावत के प्रयास से मिल गई। मगर फाइलें अभी तक ‘वित्तीयस्वीकृति’ के जाल में फंसी हैं। बच्चे वहीं बैठे हैं — जर्जर दीवारों और छतों के नीचे।
कब बनेगा नया सपना?
कामलीघाट स्कूल की कहानी सिर्फ एक स्कूल की नहीं है। यह उन दावों पर सवाल है, जिनमें हर मंच से कहा जाता है कि ‘शिक्षा का स्तर सुधार रहे हैं।’ सवाल यह भी है कि जब तक ये कमरे नहीं बनेंगे, क्या बच्चे ऐसे ही डरते-डरते पढ़ाई करते रहेंगे? क्या किसी बड़े हादसे का इंतज़ारहै? यह स्कूल नहीं, बच्चों के लिए एक खौफ का किला बन गया है। जहां हर रोज़ पढ़ाई से पहले दुआ की जाती है कि दीवार गिर न जाए, छत भरभराकर ढह न जाए, और कोई मासूम हादसे का शिकार न हो जाए।
दे रखी है आला अधिकारियों को जानकारी
एसएमसी की बैठक में प्रस्ताव लेकर स्कूल के जर्जर भवन की जानकारी उच्च अधिकारियों को दी गई है। लेकिन, अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई। स्कूल भवन की हालत जर्जर होने के कारण सुक्षा की दृष्टि से अभिभावक बच्चो को भी यहां प्रवेश नहीं दिलाते है। प्रवीण कुमार बंजारा, प्रधानाध्यापक महात्मा गांधी राजकीय विद्यालय कामलीघाट
भेज रखा है 32 लाख रुपए का प्रस्ताव
इस विद्यालय की मरम्मत के कार्य के लिए 32 लाख रुपए का प्रस्ताव बनाकर विभाग को भेजा गया है। लेकिन, अब तक इसकी स्वीकृति नहींं मिली है। साथ ही डीएमएफटी मद से बनाए जाने वाले तीन नए कमरों की भी वित्तीय स्वीकृति के लिए प्रस्ताव भेजा गया है, उसकी भी जल्द स्वीकृति मिल जाएगी। स्वीकृति मिलते ही जल्द कार्य शुरू करवा दिया जाएगा। दयानंद, मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी देवगढ़