क्रिटिकल केस में जान बचाना मुश्किल-
संभाग के डीएचओ वन, डीपीएम, डीएसएम, कॉर्डिनेटर सहित स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर्स ने प्रशिक्षण में भाग लेकर ग्राउंड लेबल की स्थिति से अवगता कराया। बताया कि छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना जिले की बाउंड्री यूपी से लगी हुई है, मजदूरी करने वाली महिलाएं बाहर चली जाती हैं और जब प्रसव का समय आता है और केस क्रिटिकल हो जाता है तो अंतिम समय पर जान
बचाना मुश्किल हो जाता है।पंजीयन भी 100 प्रतिशत नहीं-
एएनएम, आशा कार्यकर्ता की सक्रियता के बाद भी संभाग में करीब 20 प्रतिशत प्रसूताओं के पंजीयन नहीं हो पाते हैं और अक्सर यही केस में जच्चा-बच्चा की मौत होती है। ऐसे में निर्देश दिए गए कि पंजीयन कार्य में बिल्कुल भी लापरवाही न हो। एचआइएमएस, सुमन और अनमोल पोर्टल पर डेथ रिपोर्ट 24 घंटे के अंदर भरनी चाहिए।
आज फील्ड पर जाएंगे अधिकारी-
दो दिवसीय प्रशिक्षण में मंगलवार को सुबह 8 से दोपहर 12 बजे से अधिकारियों को चिन्हित केस में परिजनों से मिलाया जाएगा। जानकारी के साथ वह वापिस कार्यक्रम में आएंगी और मौत के कारण बताएंगे। संभागभर के स्वास्थ्य अधिकारी चर्चा में शामिल होंगे।
देखी जा रही लापरवाही-
दस्तक, एनआरसी कार्यक्रम, सीडीआर पोर्टल, ब्लॉक स्तर पर निगरानी कमेटी, प्रोत्साहन योजनाएं, प्रसूता व आशा-ऊषा कार्यकर्ताओं के हितलाभ जैसी 9 तरह से मातृ-शिशु मृत्यु दर कम करने के प्रयास हो रहे हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर जांच, इलाज और रेफर में लापरवाही देखी जा रही है। -मातृ-शिशु मृत्यु दर कम करने लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। मौतों के अधिकतर मामले ऐसे होते हैं जो अचानक क्रिटिकल स्थिति में आते हैं। यदि गर्भधारण के शुरूआत से ही सही जांच की जाए तो मौतों के आंकड़े कम किए जा सकते हैं। जो प्रसूताएं पहली तिमाही में अस्पताल आतीं हैं उन्हें सरकार 4 हजार रुपए अतिरिक्त देती है।
डॉ. ज्योति चौहान, क्षेत्रीय संचालक स्वास्थ्य सेवाएं।