अब तक वह 100 से ज्यादा नेत्रहीन विद्यार्थियों के जीवन को शिक्षा के जरिये संवार चुकी हैं। पत्रिका से खास बातचीत में शेखावत ने बताया कि पढ़ाई कर संस्थान छोड़कर जाने वाले विद्यार्थियों से भी अभी भी मां की तरह जुड़ाव है।
नहीं मिलता अनुदान
संस्थान को अभी तक सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की ओर से कोई अनुदान नहीं मिलता है। ऐसे में परिवार के सभी सदस्य व कुछ लोग संस्थान को आर्थिक मदद देते हैं। संस्थान को पिछले दिनों भामाशाह ने हर्ष इलाके में लगभग 650 वर्गगज जमीन दान दी है। अब तक संस्थान किराए के भवन में संचालित है। निर्मला शेखावत ने बताया कि संघर्ष की इस यात्रा में पति बजरंग सिंह शेखावत व बेटा अजय सिंह ने हमेशा हौसला बढ़ाया है। ऐसे शुरू हुआ संघर्ष का सफर
निर्मला ने बताया कि बेटी आशा शेखावत और रिंकू शेखावत के नेत्रहीन होने पर सीकर में पढ़ाई के लिए कई स्कूलों में जाकर पता किया, लेकिन ब्रेल पढ़ाने वाले शिक्षक नहीं मिले। इस पर खुद बेटियों को लेकर दिल्ली गई। वहां दोनों बेटियों के साथ रहकर पढ़ाई कराई। बेटियों की पढ़ाई के लिए इतने संघर्ष से ही मन मे आया कि दूसरे नेत्रहीनों विद्यार्थियों की कैसे मदद कर सकते हैं।
इसके बाद 2016 में पांच नेत्रहीन विद्यार्थियों के साथ संस्थान की शुरुआत की। फिलहाल संस्थान में 35 नेत्रहीन युवा अध्ययनरत है। निर्मला शेखावत की दोनों बेटियां बैंक सेवा में चयनित हो चुकी है। शेखावत ने बताया कि बड़ी बेटी आशा शेखावत रीको क्षेत्र एसबीआइ बैंक में लिपिक के पद पर कार्यरत है। छोटी बेटी रिंकू शेखावत दिल्ली एसबीआइ बैंक में डिप्टी ब्रांच मैनेजर के पद पर कार्यरत है। संस्थान के आठ युवा सरकारी सेवा में चयनित हो चुके हैं।