मंदिर से जुड़े जानकारों के अनुसार, करीब 350 साल पहले बालाजी महाराज की अष्टधातु प्रतिमा को जयपुर से किसी अन्य स्थान पर ले जाया जा रहा था। लेकिन रास्ते में रात होने पर मूर्ति को विश्राम के लिए भगवान राम के मंदिर के पास रखा गया। अगली सुबह जब मूर्ति को उठाने की कोशिश की गई, तो वह अपनी जगह से हिली तक नहीं। मान्यता है कि उसी समय प्रतिमा से आवाज आई कि मैं अपने आराध्य राम के पास ही रहना चाहता हूं।… तब सीकर के शासक राजा देवी सिंह ने इसे स्थायी रूप से यहीं स्थापित करवा दिया।
इस मंदिर का एक और बड़ा आकर्षण है विश्व का सबसे बड़ा रोट, जो साल 2023 में बालाजी महाराज को अर्पित किया गया। इस रोट का वजन था 2700 किलो! इसे तैयार करने में जेसीबी, क्रेन और सैकड़ों कारीगरों का योगदान रहा। यही कारण है कि इस अद्भुत आयोजन ने मंदिर को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई। 25000 से ज्यादा भक्तों ने एक साथ प्रसादी पाई थी।
हर साल हनुमान जयंती पर मंदिर में भव्य कार्यक्रम होते हैं। देशभर से लाखों श्रद्धालु यहां उमड़ते हैं। भजन संध्या, अखंड रामायण और विशेष पूजा.पाठ जैसे आयोजनों से पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता है। देवीपुरा बालाजी सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि चमत्कार, परंपरा और श्रद्धा का प्रतीक है।