सीकर. जिले में कृषि क्षेत्र में एक सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहा है। किसान अब पारंपरिक तरीकों को पीछे छोड़ नवाचार की राह पर हैं। औषधीय और सब्जियों की खेती ने न सिर्फ किसानों की आय बढ़ाई है, वहीं खेती को टिकाऊ भी बनाया है। पारंपरिक फसलों से मोहभंग होता जा रहा है और इसकी जगह अब औषधीय पौधों तथा सब्जियों की खेती ने ले ली है। पिछले पांच वर्षों में जिले में औषधीय पौधों और सब्जियों की खेती का रकबा लगातार बढ़ा है। इसका नतीजा है कि अब जिले में हर साल औसतन नौ हजार हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में इन फसलों की बुवाई की जा रही है। कई किसानों ने अच्छे भाव लेने के लिए मेट्रो सिटी और होटलों तक में सीधे सप्लाई करनी शुरू कर दी है। किसानों के अनुसार गेहूं, सरसों जैसी परम्परागत फसलों में रोग, कीट और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। इसके कारण उत्पादन में गिरावट और लागत में इजाफा हुआ है। जबकि औषधीय पौधे अश्वगंधा, कालमेघ, स्टीविया और लौकी, बैंगन, टमाटर, खीरा, भिंडी, मिर्च आदि आधुनिक तकनीक से बुवाई के बाद बेहतर मुनाफा दे रही हैं।
आय के साथ जल सरंक्षण जिले में भूमिगत जलस्तर में लगातार गिरावट आ रही है। हर साल डेढ मीटर से ज्यादा भूजल स्तर नीचे चला जाता है। जिले के अधिकांश ब्लॉक अतिदोहन की श्रेणी में शामिल है। वहीं जिले में सिंचाई के लिए नदी या तालाब जैसा पारम्परिक जल स्रोत नहीं है। जिससे खेती का दायरा सिमट रहा है। ऐसे में कृषि विभाग की ओर से फार्म पौंड, जलहौज,मिनी फव्वारा संयंत्र, मल्चिंग शीट, ग्रीन हाउस, शेडनेट, कलस्टर के लिए अनुदान देकर मार्गदर्शन, प्रशिक्षण, प्रमाणित बीज और अनुदान सहायता दी जा रही है। विभागीय आंकड़ों के अनुसार, औषधीय खेती से किसानों की आय में बढ़ोतरी हुई है, वहीं जल संरक्षण और भूमि की उर्वरता को भी लाभ पहुंचा है।
अनुकूल है आबोहवा सीकर कृषि खंड का प्राकृतिक व भौगोलिक वातावरण औषधीय व उद्यानिकी फसलों के लिए अनुकूल है। इससे इन फसलों का अनुकूल तापमान रखकर हर सीजन में बेहतर उत्पादन लिया जा सकता है। इस कारण सब्जियों सहित औषधीय फसलों का बुवाई क्षेत्र बढ़ा है।
रामनिवास पालीवाल, अतिरिक्त निदेशक कृषि