ऑटोइयून बीमारी के बढ़ने की गति इतनी धीमी है कि सालों तक इस बीमारी का पता नहीं चल पाता है। परेशानी की बात है कि सरकार की ओर से इस रोग की जांच के लिए किसी तरह की निशुल्क व्यवस्था नहीं है। मजबूरी में परिजनों को जयपुर या दिल्ली में जाकर एलर्जी टेस्ट करवाना पड़ता है। हालांकि इस बीमारी का एकमात्र इलाज महज ग्लूटेन फ्री खाना ही है। लेकिन जांच नहीं होने के कारण लोगों को पता ही नहीं चलता कि ग्लूटेन फ्री उत्पाद क्या और कौनसा है।
कैंसर रोग का खतरा
चिकित्सकों के अनुसार आमतौर पर इस रोग की शुरूआत में बीमार में उल्टी-दस्त जैसे सामान्य लक्षण नजर आते हैं। जब बच्चे का विकास पूरी तरह रुक जाता है। गेहूं से एलर्जी की जांच खून के जरिए एंटी टीटीजी और बॉयोप्सी से होती है। तो कई चिकित्सक एलर्जी टेस्ट करवाते हैं। ग्लूटेन की एलर्जी आंत को प्रभावित करती है और रोग के लंबे समय तक जारी रहने पर आंतों के कैंसर और प्रतिरोध प्रणाली के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
यह है विकल्प
गेहूं में ग्लूटेन होने के कारण एलर्जी होती है। जिससे मक्का, बाजरा, चावल, ज्वार, सभी प्रकार की दाल, दूध या दूध से बने पदार्थ की रोगी का भोजन बन जाते हैं। हालांकि बाजार में ग्लूटेन फ्री खाद्य उत्पाद भी आते हैं। सिलिएक बीमारी के कारण पीड़ित एनीमिया, रिकेट्स, ओस्टोपोरोसिस, कद का छोटा होना या शरीर का कमजोर होना है। इस रोग के लक्षणों के कारण चिकित्सक भी आसानी से इसे नहीं पकड़ पाते हैं।
हर रोज आ रहे मरीज
गेहूं से एलर्जी के कारण बच्चों में सिलिएक रोग तेजी से बढ़ रहा है। कल्याण अस्पताल और सरकारी जनाना अस्पताल के आउटडोर में इस प्रकार के मरीजों की संया बढ़ी है। पिछले एक साल में सौ से ज्यादा बच्चे इस रोग से पीड़ित हो चुके हैं। डॉ. अशोक कुमार, वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ