ग्रामीण अंचल में परेशानी
फसलों की थ्रेसिंग के दौरान हवा चलने के कारण काफी दूर तक वातावरण में धूल के कण तैरते रहते हैं। हवा में उड़े कण सांस के जरिए सीधे फेफड़ों में चले जाते हैं, जिससे फेफड़ों में सूजन आ रही है। धूल व परागकणों के कारण दमा और पहले से सांस की समस्या झेल रहे लोगों की स्थिति और बिगड़ जाती है। खेतों में काम करने वाले किसान, मजदूर और आसपास रहने वाले लोग इस समस्या से ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। जिन्हें धूल और परागकणों के कारण सांस लेने में कठिनाई हो रही है। चिकित्सकों के अनुसार धूलभरे वातावरण में कम जाएं और सांस लेने में परेशानी होने पर फौरन पास के अस्पताल के चिकित्सक से उपचार लें।
यह है लक्षण
चिकित्सकों के अनुसार अस्थमा श्वास तंत्र की बीमारी है, जिसके कारण सांस लेना मुश्किल हो जाता है। श्वास मार्ग में सूजन आ जाने के कारण यह समस्या बढ़ जाती है। मरीजों को छोटी-छोटी सांस लेनी पड़ती है, छाती मे कसाव जैसा महसूस होता है, सांस फूलने लगती है और बार-बार खांसी आती है। वहीं थ्रेसिंग के कारण आंखों व एलर्जी के मरीजों की संख्या में बढ़ रही है। थ्रेसिंग के समय सांस के रोगियों को नाक और हाथों को कपड़े से ढककर काम करना चाहिए।
सांस के मरीज बढ़े
जिले में इस समय रबी की फसलों की कटाई चल रही है। कटाई और थ्रेसिंग के दौरान उड़ने वाले धूलकण काफी दूर तक चले जाते हैं। जिससे सांस संबंधी रोगों के पुराने व नए मरीजों में अस्थमा अटैक आने के मामले बढ़े हैं। कई बार मरीज को भर्ती करना पड़ता है। सांस के मरीज नियमित रूप से दवाएं लें। थ्रेसिंग और प्रदूषण के कारण आने वाले दिनों में इस प्रकार के मरीज और बढ़ेंगे। डॉ. प्रहलाद दायमा, वरिष्ठ विशेषज्ञ श्वसन रोग