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उदयपुर

पिता के निधन के बाद लक्ष्यराज मेवाड़ की अनूठी पहल, 300 साल के टूटे रिश्ते को जोड़ा; सिटी पैलेस पहुंचे 5 गांवों के लोग

Udaipur News: पूर्व राजपरिवार के सदस्य अरविंद सिंह मेवाड़ के निधन पर सिटी पैलेस में कई तरह की परम्पराएं निभाई जा रही है।

उदयपुरMar 27, 2025 / 03:16 pm

Alfiya Khan

mewar
उदयपुर। मेवाड़ के तत्कालीन राज दरबार में 300 साल पहले टूटी परम्परा बुधवार को फिर देखने को मिली। मारवाड़ के 5 गांवों के राजपुरोहितों ने प्रण तोड़ते हुए उदयपुर के सिटी पैलेस में कदम रखा। ये पांच गांव देसूरी पाली के पास स्थित घेनड़ी, पिलोवणी, वणदार, रूंगड़ी और शिवतलाव हैं, जो मेवाड़ की सीमा के अंतिम छोर के गांव हैं।
पांच गांव से करीब सवा सौ वरिष्ठजन राजपुरोहित परिवार के सदस्य उदयपुर आए। सिटी पैलेस में पूर्व राजपरिवार के सदस्य लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने उनकी अगवानी की। पैलेस से बरसों बाद इन गांवों को न्योता मिला था। इस पर गांव में उत्सुकता रही कि आखिर सालों पहले रुकी परम्परा वापस कायम होगी। पूर्वजों की परम्परा को पुनर्जीवित होते देख गांव के प्रतिनिधि बेहद खुश थे। लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने प्रतिनिधियों को अरविंद सिंह मेवाड़ की तस्वीर भेंट कर सम्मान किया। ग्रामीणों के लिए पैलेस के दरवाजे हमेशा खुले होने की बात कही। इधर, ग्रामीणों ने भी लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ को गांव आने का न्योता दिया।

राजपुरोहितों का महल में नहीं जाने का वचन

 प्रतिनिधियों ने बताया कि रक्षासूत्र भेजने के बदले राज दरबार से जवाब नहीं आया, तो बहन-बेटियों ने गांव के वरिष्ठजनों से वचन लिया कि बुलावा नहीं आए, तब तक राजपुरोहित महलों में नहीं जाएंगे। बुजुर्गों ने भी बेटियों के मान में वचन दे दिया। यह स्थिति 300 साल तक बनी रही और आखिर सिटी पैलेस के बुलावे पर ग्रामीण यहां पहुंचे।

दिया न्योता तो फिर शुरू हुई परम्परा

पूर्व राजपरिवार के सदस्य अरविंद सिंह मेवाड़ के निधन पर सिटी पैलेस में कई तरह की परम्पराएं निभाई जा रही है। इस बीच लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने ऐतिहासिक परंपरा को पुनर्जीवित करने का निर्णय लिया। उन्होंने पहल करते हुए 5 गांवों के लोगों को सिटी पैलेस आने का न्योता भेजा। पैलेस पहुंचने पर लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने पांचों गांवों के राजपुरोहितों की अगवानी की।

बहन-बेटियां भेजती थीं रक्षासूत्र

पूर्व में पांचों गांवों की बहन-बेटियां हर साल राजदरबार में रक्षासूत्र भेजती थीं। इसके बदले में राजदरबार से उनके लिए चूंदड़ भेजी जाती थी। दशकों बाद किसी कारणवश दरबार से चूंदड़ भेजना बंद हो गया। बहन-बेटियों ने इस उम्मीद के साथ रक्षासूत्र भेजने का क्रम जारी रखा कि आखिर कभी तो दरबार से चूंदड़ी आएगी। यह स्थिति भी तीन दशक तक चली।

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