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बांग्लादेश चला तालिबान की राह? नई पाठ्यपुस्तकों की महिलाओं को सिर्फ घर का काम करने की सलाह

बांग्लादेश में कट्टरपंथी एजेंडे को आगे बढ़ाने का काम किया जा रहा है। इसके तहत महिलाओं को सिर्फ घर का काम करने की सलाह दी गई है।

भारतJan 29, 2025 / 11:46 am

Tanay Mishra

Bangladeshi woman doing household chores

Bangladeshi woman doing household chores

बांग्लादेश में मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में चल रही अंतरिम सरकार के कामों के ज़रिए लगातार कट्टरपंथियों के एजेंडे को बढ़ाया जा रहा है। पाठ्यपुस्तकों के बदलाव में भी यह सब स्पष्ट दिख रहा है। बांग्लादेश में कक्षा दो में पढ़ाई जाने वाली पुस्तक ‘अमर बांग्ला बोई’ में एक कहानी ‘अमर बरीर काज’ (हमारे घर के काम) नाम की कहानी थी। इस कहानी में लड़के और लड़कियाँ, दोनों घर के कामों करते हुए दिखाए गए थे। लेकिन इस कहानी को इस तरह से बदला गया है कि नए रूप में यह कहानी अब लैंगिक बराबरी के आधुनिक दृष्टिकोण के बजाए पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं को ही पोषित करती है।

महिलाओं को सिर्फ घर का काम करने की सलाह

‘अमर बांग्ला बोई’ की कहानी ‘अमर बरीर काज’ में बदलाव करते हुए इसके नए संस्करण में घर के काम ज़्यादातर महिला पात्रों को दिए गए हैं, जबकि घर के बाहर के काम पुरुष पात्रों को दिए गए हैं। इस तरह यह कहानी अब पुरुष और महिला को लेकर तालिबानी मानसिकता को ही आगे बढ़ाती है। ऐसा करते हुए महिलाओं को सिर्फ घर का काम करने की सलाह दी गई है।

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इस तरह बदले गए संवाद

वर्ष 2025 के शैक्षणिक वर्ष के लिए जारी संशोधित पाठ में कहानी के महिला पात्र तुली और पुरुष पात्र टोपू के कथन को बदल दिया गया है। 2024 के संस्करण में टोपू नामक पुरुष पात्र को “मैं घर साफ करूंगा और मैं कपड़े व्यवस्थित करूंगा” जैसी बातें कहते हुए दिखाया गया था। पर संशोधित संस्करण में ये बातें भी अब महिला पात्र तुली द्वारा कही गई हैं। इसके अलावा, 2024 के संस्करण में जब तुली के पिता बाज़ार जाने का जिक्र करते हैं, तो तुली कहती है, “मैं बाज़ार जाऊंगी।” 2025 के संस्करण में यह बात अब टोपू द्वारा बोली गई है, जो कहता है, “मैं पिताजी के साथ बाज़ार जाऊंगा।” वहीं, तुली कहती है, “मैं घर के काम करूंगी।”

तालिबान की राह पर बांग्लादेश?

क्या बांग्लादेश भी तालिबान की राह पर चल रहा है? तालिबान के शासन में अफगानिस्तान में महिलाओं पर कई पाबंदियाँ लगाईं जा चुकी हैं। ऐसे में अब बांग्लादेश की पाठ्यपुस्तक में हुए इस बदलाव से ये कयास लगाए जा रहे हैं कि बांग्लादेश में अफगानिस्तान की तरह ही महिलाओं पर पाबंदियाँ लगाईं जा रही हैं।

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