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पानी पर सियासत, घुटनों पर आएगा Pakistan, सिंधु जल समझौते पर रोक

Indus Waters Treaty: पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठाते हुए भारत सरकार ने बुधवार को दशकों पुराने जल-बंटवारे समझौते, सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया।

भारतApr 24, 2025 / 09:25 am

Devika Chatraj

साल 1960 में हुए सिंधु जल समझौता को तत्काल प्रभाव से स्थगित रखने का निर्णय लिया गया है। पाकिस्तान के लिए लाइफ लाइन कही जाने वाली सिंधु और सहायक नदियों के पानी पर हिंदुस्तान का नियंत्रण होते ही वहां के लोग पानी के लिए तरस जाएंगे। सिंधु और सहायक नदियां चार देशों से गुजरती हैं। इतना ही नहीं 21 करोड़ से ज्यादा जनसंख्या की जल जरूरतों की पूर्ति इन्हीं नदियों पर निर्भर करती है।

सिंधु जल संधि क्या है?

सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता से हस्ताक्षरित एक जल-बंटवारा समझौता है। यह संधि सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों सिंधु, झेलम, चेनाब, रावी, ब्यास और सतलुज के पानी के उपयोग को नियंत्रित करती है।

सिंधु जल समझौता और पाकिस्तान

कृषि संकट बढ़ेगा
> पाकिस्तान की 80 फीसदी खेती योग्य भूमि (16 मिलियन हेक्टेयर) सिंधु नदी प्रणाली के पानी पर निर्भर है।

> इस पानी का 93 फीसदी हिस्सा सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिसके बिना खेती असंभव है।

> सिंधु जल समझौते के स्थगित होने पर पाकिस्तान में खाद्य उत्पादन में गिरावट आ सकती है, जिससे लाखों लोगों की खाद्य सुरक्षा को गंभीर खतरा हो सकता है।
पीने के पानी की किल्लत
> सिंधु समझौते से मिलने वाले पानी से पाकिस्तान के 237 मिलियन से अधिक लोगों का भरण-पोषण होता है। इसमें पाकिस्तान की सिंधु बेसिन की 61 फीसदी आबादी शामिल है।

> सिंधु और उसकी सहायक नदियों से पाकिस्तान के प्रमुख शहर कराची, लाहौर, मुल्तान निर्भर रहते हैं।

> पाकिस्तान की शहरी जल आपूर्ति रुक जाएगी, जिससे वहां अशांति फैलेगी।

> पाकिस्तान पहले ही बलूचिस्तान और खैबर-पख्तूनवा में बगावत का सामना कर रहा है। कृषि और खाद्य से जुड़ी अन्य समस्याओं के सामने आने पर पाकिस्तानी निजाम के लिए यहां बगावत को काबू करना मुश्किल हो जाएगा।
ऊर्जा संकट होगा गहरा
> सिंधु और झेलम नदियों पर पाकिस्तान ने कई हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट बना रखे हैं। जल आपूर्ति में रुकावट से बिजली उत्पादन घटेगा जिससे देश में ऊर्जा संकट और ज्यादा भयानक रूप ले सकता है।

> पाकिस्तान के तरबेला और मंगला जैसे पॉवर प्रोजेक्ट इस नदी पर निर्भर करते हैं।

> बिजली उत्पादन ठप हो जाएगा, जिससे उद्योग और शहरी इलाकों में अंधेरा छा जाएगा।

क्यों भारत का यह फैसला है ऐतिहासिक?

भारत ने इससे पहले कभी सिंधु जल समझौते को नहीं रोका था। यह पहली बार है जब भारत ने इस पर सख्त निर्णय लिया है। यह फैसला दर्शाता है कि अब भारत पाकिस्तान की आतंकवाद को समर्थन देने वाली नीति को बर्दाश्त नहीं करेगा।

भारत को क्या होगा लाभ

भारत सिंधु समझौते के तहत दिए गए अधिकारों का पूरा उपयोग कर सकता है। भारत यहां सीमित बांध बना सकता है, जिससे भारत में जल की उपलब्धता काफी बढ़ जाएगी। बिजली परियोजनाएं शुरू कर सकता है, जिससे बिजली उत्पादन को बड़ा बूस्ट मिलेगा। भारत सिंचाई योजनाओं का विस्तार कर सकता है, जिससे कृषि उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा।

ऐतिहासिक भूल को सुधारने का समय

कई विशेषज्ञ सिंधु संधि जल समझौते को एक ऐतिहासिक भूल मानते रहे हैं। इस संधि की अनोखी बात यह है कि यह संधि डाउनस्ट्रीम देश पाकिस्तान के पक्ष में है, जिससे उसे सिंधु नदी प्रणाली के लगभग 80% पानी तक पहुंच मिलती है। यह आवंटन उल्लेखनीय रूप से बहुत ज्यादा है। अमेरिका के साथ कोलरोडो और तिजुयाना नदी के जल बंटवारे पर 1944 की जल संधि के तहत मैक्सिको को मिलने वाले हिस्से से लगभग 90 गुना अधिक पानी पाकिस्तान को मिल रहा है।

सिंधु जल समझौते में संसोधन जरुरी

एक्सपर्ट का मानना है कि अब भारत इस भूल को ठीक करे और समझौते में जरूरी संशोधन कर सिंधु और उसके सहायक नदियों का पानी उचित मात्रा में आवंटित करे। पाकिस्तान रुक-रुक कर भारत पर आतंकी हमला करता रहता है। नेहरू ने यह समझौता दोनों देशों के बीच संबंधों को बढ़ावा देने की उम्मीद से की थी। लेकिन पाकिस्तान हर बार इस उम्मीद पर पानी फेरता रहा है। ऐसे में भारत सरकार का सिंधु जल समझौता स्थगित करने का फैसला पाकिस्तान पर करारा और गहरी चोट देने वाला साबित होने वाला है।

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