प्रयागराज में हर छठें साल अर्ध कुंभ का भी आयोजन होता है। इस समय महाकुंभ 2025 का प्रयागराज में आयोजन हो रहा है। यह 26 फरवरी महाशिवरात्रि तक लगा है। खास बात यह है कि मौनी अमावस्या 2025 पर पूर्ण कुंभ की स्थिति बन रही है और 144 साल बाद इस कुंभ में त्रिवेणी योग का संयोग बन रहा है। अब आइये जानते हैं कि अगला कुंभ कब और कहां लगेगा
अगला कुंभ मेला कब और कहां लगेगा
हरिद्वारे कुम्भयोगो मेषार्के कुम्भगे गुरौ, प्रयागे मेषसंस्थेज्ये मकरस्थे दिवाकरे ।।
उज्जयिन्यां च मेषार्के सिंहस्थे च बृहस्पतौ । सिंहस्थितेज्ये सिंहार्के नाशिके गौतमीतटे।।
सुधाबिन्दुविनिक्षेपात् कुम्भपर्वेति विश्रुतम् ।। अर्थः जब कुंभ राशि में बृहस्पति और मेष राशि में सूर्य प्रवेश करेंगे तब हरिद्वार में गंगा किनारे कुंभ लगेगा। वहीं जब मकर राशि में सूर्य और मेष राशि में बृहस्पति आएंगे तो प्रयागराज में कुंभ होगा। वहीं बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में रहेंगे तो कुंभ उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे लगेगा, जबकि बृहस्पति और सूर्य के सिंह राशि में आने पर नासिक में गोदावरी नदी के तट पर कुंभ का आयोजन होगा।
अगला कुंभ कहां लगेगा
पंचांग के अनुसार अगला कुंभ 2027 में नासिक में गोदावरी नदी के तट पर लगना है। इसमें भी बड़ी संख्या में हिंदू धर्मावलंबी शामिल होंगे।कुंभ मेले की कहानी
कुंभ मेले की शुरुआत की कहानी समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है। मान्यता है कि देवताओं और असुरों ने अमृत पाने के लिए समुद्र मंथन किया। इसी से अमृत कलश लिए हुए भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए। इसी अमृत को लेकर देवताओं और असुरों के बीच युद्ध शुरू हो गया। इस संघर्ष के दौरान भगवान विष्णु ने अपने वाहन गरुड़ को अमृत के घड़े की सुरक्षा का दायित्व सौंपा।जब गरुड़ अमृत कलश लेकर आकाश मार्ग से उड़ रहे थे, तभी इसकी बूंदें पृथ्वी पर प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक में गिर गईं। इसके बाद से यहां कुंभ मेले का आयोजन होने लगा। इसके अलावा एक अन्य कथा के अनुसार इस अमृत कलश के लिए देवता दानवों में 12 दिन युद्ध हुआ जो मनुष्यों के 12 वर्षों के बराबर था। इसलिए हर 12 वर्ष में इन चारों स्थानों पर बारी-बारी से आयोजन शुरू हो गया।
महाकुंभ के प्रमुख इवेंट
अखाड़ों की भागीदारीः महाकुंभ मेले में देशभर के प्रमुख अखाड़ों की भागीदारी होती है। इस दौरान नागा संन्यासी, महामंडलेश्वर, महंत, साधु-संत, और पीठाधीश्वर रथों और पालकियों के साथ कुंभ नगर में आते हैं और धार्मिक गतिविधियों में भाग लेते हैं। साथ ही लोगों का मार्गदर्शन करते हैं।नगर प्रवेश और शाही पेशवाई: कुंभ में साधु संतों की पेशवाई भी बड़ा कार्यक्रम है। इसमें ये हाथी-घोड़े, बग्घी, सुसज्जित रथों और पालकियों के साथ नगर में प्रवेश करते हैं।
धर्म ध्वजा की स्थापनाः धर्म ध्वजा की स्थापना भी परंपरा का हिस्सा है। इसके तरह कुंभ मेला छावनी में भूमि पूजन कर धर्म ध्वजा की स्थापना की जाती है।