यह इसलिए किया जा रहा है क्योंकि राज्य की सरकारी प्रयोगशालाओं में 1 जनवरी से 16 फरवरी के बीच किए गए परीक्षण में नौ इंजेक्शन वाली दवाएँ मानकों पर खरी नहीं उतरीं। इन दवाओं का निर्माण कर्नाटक से बाहर किया गया था, जिसके बाद राज्य ने यह मुद्दा केंद्र सरकार के समक्ष उठाया था।
मंत्री ने पत्रकारों से बातचीत में बताया कि स्वास्थ्य विभाग एक ऐसा सॉफ्टवेयर तैयार कर रहा है, जिसमें खुदरा, थोक विक्रेताओं, निर्माताओं और उनके एजेंटों का पूरा विवरण दर्ज होगा। इस सॉफ्टवेयर के जरिए ‘मानक गुणवत्ता नहीं’ (एनएसक्यू) वाली दवाओं के स्टॉक का हर स्तर पर पता लगाया जा सकेगा।
उन्होंने कहा, इस प्रणाली को जल्द ही लागू कर दिया जाएगा। सरकारी अस्पतालों से तो हम ऐसी दवाओं को तुरंत वापस ले सकते हैं, लेकिन निजी क्षेत्र के लिए अभी कोई व्यवस्था नहीं है। चूंकि केंद्र की ओर से कोई औषधि वापसी नीति नहीं है, इसलिए हम राज्य स्तर पर यह नीति बना रहे हैं। इससे यह सुनिश्चित होगा कि परीक्षण में विफल दवाएँ बाजार से हटाई जाएँ और तुरंत निर्माता को लौटाई जाएँ।
अभियान में लाखों की नकली दवाएँ जब्त
मंत्री ने बताया कि पिछले दो महीनों में चलाए गए एक विशेष अभियान में 17 लाख रुपये से अधिक मूल्य की अमानक दवाएँ जब्त की गई हैं। इस दौरान औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के उल्लंघन के तहत 75 मामले दर्ज किए गए। इसके अलावा, नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) के दुरुपयोग को रोकने के लिए जनवरी में शुरू किए गए अभियान में 488 मेडिकल स्टोरों की जाँच की गई। इसमें 400 स्टोरों को नियमों के उल्लंघन के लिए नोटिस जारी किया गया, 231 लाइसेंस निलंबित किए गए, और तीन लाइसेंस रद्द कर दिए गए।
एंटीबायोटिक्स की बिक्री पर भी नजर
17 फरवरी से शुरू हुए दो दिवसीय अभियान में यह सामने आया कि 52 मेडिकल स्टोर बिना डॉक्टर के पर्चे के एंटीबायोटिक दवाएँ बेच रहे थे। मंत्री ने कहा कि ऐसी अनियमितताओं पर सख्ती से रोक लगाई जाएगी, ताकि मरीजों को घटिया या गैर-जरूरी दवाओं से बचाया जा सके।
खाद्य सुरक्षा पर भी एक्शन
स्वास्थ्य विभाग ने खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में भी कदम उठाए हैं। जनवरी में खाद्य सुरक्षा अधिकारियों ने 3,608 खाद्य नमूनों का विश्लेषण किया, जिसमें से 26 नमूने मानव उपभोग के लिए असुरक्षित पाए गए और 28 नमूने खराब गुणवत्ता के निकले। गुंडूराव ने कहा, हमारा लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में मरीजों को सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण दवाएँ मिलें। नई नीति और सॉफ्टवेयर इस दिशा में एक बड़ा कदम होगा।