मौसम भी नहीं दे रहा साथ किसान कई सालों से कपास की खेती कर रहे, लेकिन पिछले कुछ सालों में इसकी बुवाई कम कर दी। इन वर्षों में 10 हजार हैक्टेयर रकबा कम हो गया। इसका एक कारण ये है कि मौसम साथ नहीं दे रहा और दूसरा किसानों को कपास के दाम सही नहीं मिल रहे। इससे किसानों को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ रहा। इस आर्थिक फसल से दूरी कृषि अधिकारियों की भी चिंताएं बढ़ा रही है।
प्रदेश की स्थिति प्रदेश में वर्ष-2019 से 2023 तक औसत 8 लाख 29 हजार हैक्टेयर में कपास की बुआई होती रही है। पिछले साल वर्ष 2024-25 में 6 लाख 27 हजार हैक्टेयर में बुवाई हुई है। यानी 2 लाख 2 हजार हैक्टेयर कम बुवाई हुई। इसी प्रकार कपास उत्पादन में अव्वल रहने वाले हनुमानगढ़ में वर्ष-2019 से 2023 तक औसत 2.25 लाख हैक्टेयर में बुवाई होती थी। वह पिछले साल 2024 में घटकर 1.22 लाख हैक्टेयर रह गई। इसी प्रकार श्रीगंगानगर में वर्ष 2019 से 2023 तक औसत 2.27 लाख हैक्टेयर में बुवाई होती थी, लेकिन पिछले साल 2024 में मात्र 1.143 लाख हैक्टेयर में बुवाई हुई है।
सिंचाई की बेहतर व्यवस्था की जाए कांदा के किसान बालू गाडरी का कहना है कि कपास उत्पादक किसान लगातार घाटा झेल रहे हैं। नुकसान से उभरने का कृषि विभाग के पास कोई प्रावधान नहीं है। बेमौसम बरसात, कीट लगना, सही मूल्य नहीं मिलनेे के अलावा फसल तैयार होने में कम से कम 8 माह का समय लगता है। ऐसे में किसान एक ही फसल ले पाता है। इससे किसान को 30 से 40 हजार का नुकसान होता है। जबकि गेहूं के दाम लगातार बढ़ रहे है।
कुछ सालों में कपास का रकबा कम हुआ कपास उत्पादक पिछले कुछ सालों से घाटा है। कपास के रकबे को बढ़ावा देने की दिशा में सरकार कई प्रयास कर रही है। कपास के रकबे में 15 से 20 प्रतिशत की कमी आई है। बेहतर तकनीकी मिलने से किसान पुन: कपास की खेती को प्राथमिकता देंगे।
– वीके जैन, संयुक्त निदेशक, कृषि विभाग भीलवाड़ा भीलवाड़ा जिले में कपास का रकबा
- 2019-20 44448 हैक्टेयर
- 2020-21 44759 हैक्टेयर
- 2021-22 39365 हैक्टेयर
- 2022-23 29073 हैक्टेयर
- 2023-24 32331 हैक्टेयर
- 2024-25 21219 हैक्टेयर
- 2025-26 18000 हैक्टेयर